जब हमने पाली गाय कतर में आ रही हैं, हवाईजहाज से ४००० गाय, सुनी खबर ये जब हमनें ,सोचा हम भी पालें गाय। हम भी पालें गाय, दूध मिलेगा बढिया, दूध मिलेगा बढिया, और बढ जाएगी आय, कतर के मुश्किल दिनों में कुछ हम भी हाथ बटाएँ। हम भी हाथ बटाएँ,और तारीफे सब से पाएँ, गाय खरीद तो लाएँ,पर फ़्लैट में कैसे ले जाएँ। अब लिफ़्ट में जब आई नहीं, तो सीढियों से दी चढाए। सीढियों से दी चढाए, उडी बाबा किस कमरे में ठहराएँ, तो लीविंग रूम से हमने भैया ,सोफा दिया हटाय, सोफा दिया हटाय ,और खूंटा दिया ठुकवाय, पर गाय ने तो मू मू करके शोर दिया मचाय। शोर दिया मचाय, क्यूँ न चारा खिला दिया जाय लेकिन जब गोबर किया तो हो गई हाय हाय । हो गई हाय हाय, गोबर के उपले दिए दबनाए । पर ये गोबर की बदबू अब हाथों से कैसे जाए, छोडो बदबू खुशबू ,चलो दूध निकाला जाय, दूध निकाला जाय, पर थन को पकडना तो न आय, इसके लिए पडौसी काकी को लिया बुलाय। धीरे धीरे प्यार प्यार से उन्होने हमको दिया सिखाए, हमको दिया सिखाय अब तो खीर बनाई जाए, खीर बनाइ जाए ,साथ में शायरी भी लिख ली जाए। लिखा शेर जो हमने , वो तो गाय ने लिया चबाय, गाय ने लिया चबाय, हमने पडोसन काकी क...
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