Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2020

घर घर की महाभारत

             घर घर की महाभारत  मम्मी पापा तैयार खड़े थे, गृह क्षेत्र के मैदान में।  मम्मी का रसोईक्षेत्र और पापा थे टीवी के सामने।।  दोनों ओर से वाकयुद्ध तो, जैसे शुरू हो ही चुका था।  एक दूजे के चुभते बाणों से, पूरा घर जग चुका था।।  दादी ने भी चश्मा लगाकर ड्राइंग रूम में प्रवेश किया।  दादाजी ने अखबार उठाकर, चाय पीना छोड़ दिया।।  मम्मी का सारथी बन, बेटे ने रसोई संभाल ली थी ।  अपनी सहयोग शक्ति सारी, मम्मी को सौंप दी थी।।  पापा बोले दादा-दादी से, कोई बीच में नहीं बोलेगा।  प्रियबहू का पक्ष लिया तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।।  मम्मी बोली बेटा मेरे जरा, किचन का दरवाजा खोलो।  मैंने बेलन उठा लिया है, ड्राइंग में बस मेरे संग चलो।।  देखूँ तो इनका साथ देने, के लिए कौन-कौन है खड़ा।  ऐसा कौन है जिसको पंगा, लेने का शौक है चढ़ा।।  मम्मी ने ड्राइंग में आकर, जब अपनी दिव्य दृष्टि उठाई।  सास, ससुर, नंद ,देवर, लगता है सबकी शामत आई।।  बेट...

प्रेम करती हूँ मैं, जानकी की तरह,

प्रेम करती हूँ मैं , जानकी की तरह , पर शालिनी हूँ   जानकी, ना बन पाऊँगी तुम जो भी कहोगे , करूँगी मैं वो , पर गलत बात को न , मैं सह पाऊँगी प्रेम करती हूँ................. तुम वन को चलो , संग मैं आ जाऊँगी , पर कंदमूल फल ना , रोज खा पाऊँगी प्रेम करती हूँ............. तुम पर विश्वास किया , मैने रामजी की तरह , पर कोई अग्नि परीक्षा , ना मैं दे पाऊँगी।  प्रेम करती हूँ.........  तुम धोबी की बातों में आ गए जो अगर ,  अपने घर को यूँ छोड़कर ,ना मैं जा पाऊँगी ।  प्रेम करती हूँ................  तुमको लव कुश दिए , मैंने जानकी की तरह ,  पिता का प्यार हमेशा, उन्हें मैं दिलवाऊँगी ।   प्रेम करती हूँ..............