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Showing posts from December, 2020
अध्याय 7                                                                      भगवद् ज्ञान भगवान बोले , हे पृथापुत्र , सुनो मुझे अब ध्यान पूर्वक। निसंदेह अनन्यप्रेम से जानोगे मुझे, योग में होके रत।। मैं समझाऊँगा तुमको पूर्णव्यवहारिक और दिव्य ज्ञान। शेष नहीं बचेगा कुछ तब , जब तुम लोगे इसको जान।। हजारों में से कोई एक , मुझे पाने का करता है यत्न। मुझको जान पाता है इनमें से, केवल कोई एकजन।।   पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु , आकाश है मेरी प्रकृति भौतिक। इनसे ही हर जीव का, स्थूल शरीर होता है निर्मित।।   सूक्ष्म शरीर निर्मित होता है मन बुद्धि अहंकार से। अपरा शक्ति बनती इन आठ तत्वों के अंगीकार से।। सभी जीवात्माओं की आत्मा , होती है मेरी पराशक्ति।  ये पराशक्ति ही इस अपरा शक्ति का उपयोग करती।। प्रलय और उत्पत्ति की इन शक्तियों का हूँ मैं कारण। मै ही इनका नियंता हूँ , मै ही हर कष...