आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है। उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।। चारों तरफ हरियाली, मंडरा रही है तितली, पंक्षियों की गुनगुन, से धरती गुँजी है ।। आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है। उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।। धूप की किरण जब, मेरे तन को छुए आकर, सोना सा तन चमके, पीली साड़ी भी फबी है आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है। उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।। मंद मंद पवन ने छेड़ी है जो पुरवाई लगता जैसे मोहन की मुरली बजी है।। आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है। उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।।
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