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Showing posts from February, 2021

बसंत पंचमी

 आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है।  उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।।  चारों तरफ हरियाली, मंडरा रही है तितली,  पंक्षियों की गुनगुन, से धरती गुँजी है ।।  आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है।  उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।।  धूप की किरण जब, मेरे तन को छुए आकर,  सोना सा तन चमके, पीली साड़ी भी फबी है   आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है।  उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।।  मंद मंद पवन ने छेड़ी है जो पुरवाई   लगता जैसे मोहन की मुरली बजी है।।  आई बसंत की बेला, मेरी बगिया सजी है।  उमंगे संग लाई खुशियों की ये घड़ी है।।

सरस्वती वंदना

 

BG Chapter 9 भगवान का गुप्त ज्ञान

      भगवान का गुप्त ज्ञान भगवान बोले,हे अर्जुन! आज मैं दूँगा तुमको गुप्त ज्ञान। जो तुम्हारा सभी दुखों से,सदैव करता रहेगा कल्याण।।1।। दे रहा हूँ तुमको ये ज्ञान,क्योंकि तुम मुझसे प्रेम करते। दोषरहित हो अर्जुन तुम,मुझसे कभी ईर्ष्या नहीं करते।।1।। सभी विद्धायों का राजा ये, गुप्त ज्ञान में है सर्वोत्तम। परम शुद्ध है परम पवित्र है,ज्ञान है ये बड़ा ही उत्तम।।2।। आत्मा की अनुभूति कराता, यह दिव्य अविनाशी ज्ञान। यह धर्म का सिद्धांत है, इसको ग्रहण करना आसान।।2।। श्रद्धाविहीन पुरुष कभी नहीं,पा सकते ये गुप्त ज्ञान। जन्म-मृत्यु के चक्कर में, फँसे रहना है उनका काम।।3 यह संपूर्ण जगत मेरे, अव्यक्त रूप से ही है व्याप्त। भौतिक इन्द्रियों से, नहीं हो सकता तुमको ये ज्ञात।।4 ये सारी सृष्टि मेरा अंश है, पर केवल सृष्टि मैं नहीं। मैं इन सबका कारण हूँ, पर मैं कोई एक अंश नहीं ।।5।। जैसे यह वायु सदैव, घूमती रहती है नभ के अंदर । वैसे ही ये सारे प्राणी, रहते हैं स्थित मेरे अंदर ।। 6।। हर कल्प के आरंभ में, मैं ही इनको उत्पन्न करता। कल्प के अंत होते ही, मुझमे ये सब व...

भगवान की प्राप्ति

अध्याय 8 भगवत्प्राप्ति अर्जुन बोले है पुरुषोत्तम, मुझे बताइए कौन है ब्रह्म। क्या होता है अध्यात्म और,क्या होता है सकाम कर्म।।1।। ये भौतिक जगत क्या होता है,कौन कहलाते है देवता। हे मधुसूदन ! मेरे प्रश्नों के उत्तर, दीजिए मुझे बता।।1।। यज्ञों का स्वामी है कौन, कैसे हमारे शरीर में रहता। कैसे कोई अंतकाल में, उनका स्मरण कर सकता।।2।। भगवान बोले, हे अर्जुन! दिव्य अविनाशी जीव ब्रह्म। जीव का जो नित्य स्वभाव, वो कहलाता है अध्यात्म।।3।। भौतिक शरीर से जीवो की ,गतिविधि है सकाम कर्म। पर मैं हूँ सब जीवों का स्वामी, मैं कहलाता परमब्रहम।।3।। ये अधिभूत भौतिक जगत, निरंतर परिवर्तनशील रहता। मेरे विराट रूप के अंश हैं, ये सूर्य चंद्रमा जैसे देवता।।4।।   प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित, मैं परमात्मा अंतर्यामी। मैं ही परमेश्वर, मैं ही सब वेदों के यज्ञो का स्वामी ।।4।। जो मेरा स्मरण करते करते, शरीर का है त्याग करता। वो मेरा प्रिय बन जाता और, मुझको ही प्राप्त करता।।5।। पर जो अंतकाल में मुझ को, नहीं सिमरन कर पाता। वो जिस भाव को याद करता, उसी भाव को वो पाता।।6।। इसलिए अर्जुन करते ही रहना, सदैव तुम मेरा स्मरण। क...