श्रीमद भागवतम् ( SB 3.5) से जीव का पृथ्वी पर आगमन एक जीव बड़ा ही प्यारा था, वो ईश्वर का दुलारा था। दुनिया उसकी निराली थी चारो तरफ खुशहाली थी।। दूध दही की वहाँ नदिया थीं, सोने चाँदी की बगियाँ थीं। उस बगिया में जाने कहाँ से तमों गुणी तितली एक आई। भोले जीव पर ड़ाल दी अपनी तमो गुणी उसने परछाई ।। तमों गुण को छूना था अब मिथ्या अहंकार को जगना था। ईश्वर को अब तजना था और भौतिक जगत में पटकना था।। काल के हाथों खाई पटकी, अब दिखा माया का चेहरा था। माया देवी के सैनिको का चारो दिशाओं में डेरा था ।। बोली माया कौन है रे ? तू ऐसे नहीं है जा सकता। आत्मारूप में इस जगत में तू प्रवेश नहीं पा सकता।। तू सुगंध सा यहाँ उड़ जायेगा चाहिये तुझको एक काया। मिथ्या अहंकार ही मदद करेगा जो तुझको यहाँ है लाया।। मिथ्या अहंकार भी सूक्ष्म बहुत उसको बहुत कुछ करना है। मेरी प्रकृति के तीन गुणों से आत्मा संग गुजरना है।। पिछले जन्म के कर्मफल से तुझको ये गुण मिलना है। इन तीन गुणों के अनुपात से ही तेरी प्रकृति को गढ़ना है।। पूर्व जन्म के कर्म ही रचते, इस ...
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