तारीफ़
तारीफ़ एक नायाब तोहफ़ा है ,
जो आपके जज्बातों को बयाँ कर,
जिस को दो उसे खुश कर जाता है।
सुनने वाला भी यह पल समेटकर,
अपनी मीठी यादों में संजोता है।
फिर ये तोहफ़ा देने में तू क्यों हिचकिचोता है।
यह तोहफा जो कभी आत्मविश्वास बढाता है,
तो कभी अपने पर थोडा गुरूर लाता है ,
कभी चेहरा शर्म से सुर्ख कर जाता है,
तो कभी-कभी रोते दिलो को हँसाता है।
फिर इस अनमोल तोहफ़े को देने में तेरा क्या जाता है।
पर शायद ये तोहफ़ा देने का हुनर
हर कोई नहीं समझपाता है,
इसके लिए दिल को सरल व
सोच को सकारात्मक बनाना होता है।
तब ये छोटा सा तोहफ़ा हर दिल में प्यार जगाकर,
कितने रिश्ते बना जाता है,कितने वापस ढूँढ लाता है,
फिर ये तोहफ़ा लेकर घूमने में तेरा क्या जाता है।
तारीफ़ एक नायाब तोहफ़ा है ,
जो आपके जज्बातों को बयाँ कर,
जिस को दो उसे खुश कर जाता है।
सुनने वाला भी यह पल समेटकर,
अपनी मीठी यादों में संजोता है।
फिर ये तोहफ़ा देने में तू क्यों हिचकिचोता है।
यह तोहफा जो कभी आत्मविश्वास बढाता है,
तो कभी अपने पर थोडा गुरूर लाता है ,
कभी चेहरा शर्म से सुर्ख कर जाता है,
तो कभी-कभी रोते दिलो को हँसाता है।
फिर इस अनमोल तोहफ़े को देने में तेरा क्या जाता है।
पर शायद ये तोहफ़ा देने का हुनर
हर कोई नहीं समझपाता है,
इसके लिए दिल को सरल व
सोच को सकारात्मक बनाना होता है।
तब ये छोटा सा तोहफ़ा हर दिल में प्यार जगाकर,
कितने रिश्ते बना जाता है,कितने वापस ढूँढ लाता है,
फिर ये तोहफ़ा लेकर घूमने में तेरा क्या जाता है।
-शालिनी गर्ग
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