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Showing posts from 2017

सबसे ज्यादा खुशी का लम्हा

सबसे ज्यादा खुशी का लम्हा कैसे बताएँ कब था। बीत गया जो देकर खुशियाँ हर पल वो अज़ीज़ था।। वो पल जब "मेरी गुडिया" कहकर दादी बाबा ने, मुझे पहली बार चूमा था। या वो पल जब पापा ने गोदी में उठाकर मुझे गली गली घुमाया था, शायद तब जब मम्मी ने मुझे फ्रिल वाली फ्रोक पहनाकर परियों सा सजाया था। या तब जब भइया ने साइकिल में धक्का लगाया था और मेरे गिरने पर मुझे रोते से हँसाया था। या जब मेरी छोटी बहन ने मेरी हर शैतानी व परेशानी में मेरा साथ निभाया था। वो लम्हा भी प्यारा था जब टीचर ने मुझे सबसे अच्छे बच्चे का खिताब पहनाया था। किस खुशी के पल को भूलूँ ,किस किस पल को मैं याद करूँ, वो लम्हे कैसे भूलूँ जब सखियों के प्यार के अफसानो का हँस हँस कर मजाक बनाया था। या तब जब उनके नैन से हमारा पहली बार नैन टकराया था। या तब जब पहली बार उन्होने अपने हाथो से मुझे खाना बनाकर खिलाया था। शायद तब जब मैने अपने सास ससुर में दादी बाबा सा प्यार पाया था। वो लम्हा भी यादगार था जब डाक्टर ने पहली बार पैर भारी होना बताया था। या वो लम्हा सब से प्यारा था जब मेरे नन्हों की किलकारी ने मेरी बगिया को चहकाया था। और उनकी हर नई अदा...

जब हमने पाली गाय

जब हमने पाली गाय कतर में आ रही हैं, हवाईजहाज से ४००० गाय, सुनी खबर ये जब हमनें ,सोचा हम भी पालें गाय। हम भी पालें गाय, दूध मिलेगा बढिया, दूध मिलेगा बढिया, और बढ जाएगी आय, कतर के मुश्किल दिनों में कुछ हम भी हाथ बटाएँ। हम भी हाथ बटाएँ,और तारीफे सब से पाएँ, गाय खरीद तो लाएँ,पर फ़्लैट में कैसे ले जाएँ। अब लिफ़्ट में जब आई नहीं, तो सीढियों से दी चढाए। सीढियों से दी चढाए, उडी बाबा किस कमरे में ठहराएँ, तो लीविंग रूम से हमने भैया ,सोफा दिया हटाय, सोफा दिया हटाय ,और खूंटा दिया ठुकवाय, पर गाय ने तो मू मू करके शोर दिया मचाय। शोर दिया मचाय, क्यूँ न चारा खिला दिया जाय लेकिन जब गोबर किया तो हो गई हाय हाय । हो गई हाय हाय, गोबर के उपले दिए दबनाए । पर ये गोबर की बदबू अब हाथों से कैसे जाए, छोडो बदबू खुशबू ,चलो दूध निकाला जाय, दूध निकाला जाय, पर थन को पकडना तो न आय, इसके लिए पडौसी काकी को लिया बुलाय। धीरे धीरे प्यार प्यार से उन्होने हमको दिया सिखाए, हमको दिया सिखाय अब तो खीर बनाई जाए, खीर बनाइ जाए ,साथ में शायरी भी लिख ली जाए। लिखा शेर जो हमने , वो तो गाय ने लिया चबाय, गाय ने लिया चबाय, हमने पडोसन काकी क...

मेरी कशमकश

मेरी कशमकश क्या लिखुँ किस पर लिखुँ मैं हास्य कविता, सोच सोच के परेशान हूँ मैं, कुछ भी तो नही सूझता। हे भगवान मदद करो मेरी, कुछ तो राह दिखाओ, मुझ जैसी नादान पर कुछ तो तरस तुम खाओ। राजनीती पर लिखु कैसे, उस पर तो है पाबंदी, मोदी, योगी,लालू, केजरी, सबसे तौबा कर ली। सोचा कुछ कतर की खूबसूरत वादियों पर ही लिख दूँ, पर रेतों के इन ढेरों में कहाँ से नज़ारे ढूँढू। मौसम पर लिखने की सोचा तो मुझे पसीना आया, सावन के मौसम में ज्येष्ठ का महीना पाया। मंहगाई, भ्रष्टाचार के किस्से क्यूँ याद करने, हास्य तो आएगा नहीं,आँसू लगेंगे टपकने। बोलीवुड में भी अब तो कुछ नहीं है भाता, हास्य के नाम पर वो तो फूहडपन दिखाता। क्रिकेट फिक्सिंग के भी रोज देख देख नज़ारे, इसे देखना समय बर्बादी कहते हैं अब सारे। पतिदेव को देखा प्यार से ,क्या तुम पर लिख दूँ कविता, आँखो से घूरा कुछ ऐसे जैसे सामने खडा हो चीता। बच्चे बोले देखो मम्मी हम पर तरस तुम खाओ, जाओ जाकर अपनी किसी सहेली को सूली चढ़ाओ। सहेलियाँ यहाँ मिली मुश्किल से उन पर कैसे लिख दूँ, इस हास्य कविता के चक्कर में उनको न मैं खो दूँ। पडोसियों पर लिख दिया तो फालतू में हो जाएगा पंग...

आजादी का संघर्ष

आजादी का संघर्ष आज वक्त है कर्ज चुकाएँ उनकी उस बलिदानी का, समय आ गया संघर्ष करें हम फिर से नई आजादी का। आजादी के संघर्ष की कहानी फिर से दोहरानी है, इंकलाब की वो आवाज फिर से हमें सुनानी है। राणा जैसे वीरो को आज, हिंदुस्तान पुकार रहा, भगतसिहं जैसा बलिदान,देने वाला चाह रहा। ढूँढ रहा है भारत आज, उस मर्दानी रानी को, गाँधी बापू जैसे सत्य,अहिंसा के पुजारी को। विदेशी बाजारो की गुलामी से देश बचाना है, अपने देश के उत्पादो को जन जन तक पहुचाना है। किसानों की खुशहाली से जब ये धरती लहरायेगी, गरीबी और बेरोजगारी भी कहीं अपना मुँह छुपाएगी। भ्रष्टाचार के कीडे को हम मिलकर आज भगाएँगे, मेहनत और सच्चाई वाली लगन सभी में जगाएँगे। फिरंगी संस्कृति को छोड अपनी संस्कृति अपनानी है, अपनी भाषा सभ्यता की कीर्ती जग में फैलानी है। हर भारतीय के दिल में बैठा, जो वीर सैनानी है, उसको बस आजादी की गाथा याद करानी है। आज वक्त है कर्ज चुकाएँ उनकी उस बलिदानी का, समय आ गया संघर्ष करें हम फिर से नई आजादी का। -शालिनी गर्ग

कुछ पुराने नगमे 'बिन मुरली वाला'

कुछ पुराने नगमे सोलह साल की उम्र में अक्सर, हर लडकी माँगती है एक दुआ भगवान से। शायद मैने भी माँगी थी एक दुआ, अपने कॄष्णा के  गोवर्धन  गाँव में। गिरिराज की परिक्रमा लगाते हुए, पर्वत पर श्रद्धा से जल चढाते हुए। एक कामना की थी   बचपन में, एक प्यारे से वर की। जो मुझे दे सके बेइंतहा प्यार, क्यो माँगा था कब माँगा था, भूल गई थी मै बचपन की वो याद, पर शायद सुन ली  मेरी वो फरियाद। और आज मिल गया मुझे कॄष्णा का  पैगाम, दे दिया उन्होने मुझे अपना ही एक नाम । जिसे सुनकर याद आ गया मुझे मेरा, वो मासूम अनजाना बचपन का वो पल, जब मैने अनजाने में ही माँग लिया था मेरा वो साँवला सा  सैया  , बिन मुरली वाला  कन्हैया ।। -शालिनी गर्ग

गिरिराज किशोर गर्ग

२० वर्ष पुराना ये नगमा जिसका पहला अक्षर मिलाकर तुम्हारा नाम बनता है आज शादी की वर्षगाँठ पर अचानक याद आ गया गि ला न शिकवा खुदा से कोई रि स्ता जो मिला तेरे प्यार का रा तो को अकसर देखा था, ज ब ख्वाब तेरे दीदार का। कि स्मत ने मुझको दे दिया आज शौ हर मेरा दिलदार सा, र ब से दुआ है इतनी बस ग म का न अब कोई साथ मिले र हू तेरी बन के तेरे दिल मे हमेशा ग लती से भी हमारा विश्येवास न हिले  । -शालिनी गर्ग

बीता पल

बीता तेरे साथ जो पल अफसाना बन गया, कुछ खुशी का कुछ गम का तराना बन गया। सोचा था अब ढेर सारी बाते होंगी तेरी मेरी, पर गुपचुप गुमसुम सा एक फसाना बन गया। अनजानों की तरह मिले,फिर चल दिए हम घर, सोचा था जो ख्वाब वो दिल में ही दब गया। पर बीता ये खामोश पल भी मुस्कान दे गया, तुझे याद करने का एक नया बहाना बन गया।

माँ

माँ तेरी हर बात याद आती है माँ मुझे आज। तेरी हर डाँट प्यारी लगती है माँ क्युँ आज। तेरा वो रोकना वो टोकना जो गवारा नहीं था मुझे, क्यों सही लगता है हर वो पल माँ आज। कभी पढाई के लिए तेरा टी.वी.पर रोक लगाना कभी पढाई छुडवाकर हमें ताश खिलाना। हँसी दे जाता है वो लम्हा जब याद आता है मुझे आज तेरी हर बात याद आती है माँ मुझे आज, वो सूँई में धागा पिरोकर सिलना सिखाना बुनाई, कढाई का वो उलझा सुलझा ताना बाना न जाने किन यादों में उडा ले चला है मुझे आज। तेरी हर बात याद आती है माँ मुझे आज... तेरी सास देगी ताने मुझे का वो डर दिखाना, इस बहाने घर के हमें सारे काम सिखाना, तेरे काम करने का वो हुनर मुझमें झलकता है माँ आज। तेरी हर बात याद आती है माँ मुझे आज... सुबह सुबह चाय के साथ तेरा हमें जगाना, और नरम नरम गरमागरम रोटियाँ खिलाना। क्यों वो दिन वापस नहीं आता है आज। तेरी हर बात याद आती है माँ मुझे आज... -शालिनी गर्ग'

ये दिल है तुम्हारा