सबसे ज्यादा खुशी का लम्हा कैसे बताएँ कब था।
बीत गया जो देकर खुशियाँ हर पल वो अज़ीज़ था।।
वो पल जब "मेरी गुडिया" कहकर दादी बाबा ने, मुझे पहली बार चूमा था।
या वो पल जब पापा ने गोदी में उठाकर मुझे गली गली घुमाया था,
शायद तब जब मम्मी ने मुझे फ्रिल वाली फ्रोक पहनाकर परियों सा सजाया था।
या तब जब भइया ने साइकिल में धक्का लगाया था और मेरे गिरने पर मुझे रोते से हँसाया था।
या जब मेरी छोटी बहन ने मेरी हर शैतानी व परेशानी में मेरा साथ निभाया था।
बीत गया जो देकर खुशियाँ हर पल वो अज़ीज़ था।।
वो पल जब "मेरी गुडिया" कहकर दादी बाबा ने, मुझे पहली बार चूमा था।
या वो पल जब पापा ने गोदी में उठाकर मुझे गली गली घुमाया था,
शायद तब जब मम्मी ने मुझे फ्रिल वाली फ्रोक पहनाकर परियों सा सजाया था।
या तब जब भइया ने साइकिल में धक्का लगाया था और मेरे गिरने पर मुझे रोते से हँसाया था।
या जब मेरी छोटी बहन ने मेरी हर शैतानी व परेशानी में मेरा साथ निभाया था।
वो लम्हा भी प्यारा था जब टीचर ने मुझे सबसे अच्छे बच्चे का खिताब पहनाया था।
किस खुशी के पल को भूलूँ ,किस किस पल को मैं याद करूँ,
वो लम्हे कैसे भूलूँ जब सखियों के प्यार के अफसानो का हँस हँस कर मजाक बनाया था।
या तब जब उनके नैन से हमारा पहली बार नैन टकराया था।
या तब जब पहली बार उन्होने अपने हाथो से मुझे खाना बनाकर खिलाया था।
शायद तब जब मैने अपने सास ससुर में दादी बाबा सा प्यार पाया था।
वो लम्हा भी यादगार था जब डाक्टर ने पहली बार पैर भारी होना बताया था।
या वो लम्हा सब से प्यारा था जब मेरे नन्हों की किलकारी ने मेरी बगिया को चहकाया था।
और उनकी हर नई अदा ने मेरा दिन दिन मुस्काया था।
वो खुशी का लम्हा कैसे भूलूँ जब स्कूल से मुझे मुख्य अतिथी बनने का निमंत्रण आया था,
और बैनर पर उन्होने मुख्य अतिथी- शालिनी गर्ग छपवाया था।
खुशियों के ये लम्हे दुगने हो गए जब से तुम सखियों का संग पाया है।
कभी मोर्निंगवाक करते गुदगुदाया है तो कभी चाय की चुसकियों के संग हँसाया है।
ये मेरे अनमोल लम्हे,ये खुशियों से भरे पल हर दम मेरे दिल के अज़ीज हैं,हरदम मेरे दिल के करीब हैं।
किस खुशी के पल को भूलूँ ,किस किस पल को मैं याद करूँ,
वो लम्हे कैसे भूलूँ जब सखियों के प्यार के अफसानो का हँस हँस कर मजाक बनाया था।
या तब जब उनके नैन से हमारा पहली बार नैन टकराया था।
या तब जब पहली बार उन्होने अपने हाथो से मुझे खाना बनाकर खिलाया था।
शायद तब जब मैने अपने सास ससुर में दादी बाबा सा प्यार पाया था।
वो लम्हा भी यादगार था जब डाक्टर ने पहली बार पैर भारी होना बताया था।
या वो लम्हा सब से प्यारा था जब मेरे नन्हों की किलकारी ने मेरी बगिया को चहकाया था।
और उनकी हर नई अदा ने मेरा दिन दिन मुस्काया था।
वो खुशी का लम्हा कैसे भूलूँ जब स्कूल से मुझे मुख्य अतिथी बनने का निमंत्रण आया था,
और बैनर पर उन्होने मुख्य अतिथी- शालिनी गर्ग छपवाया था।
खुशियों के ये लम्हे दुगने हो गए जब से तुम सखियों का संग पाया है।
कभी मोर्निंगवाक करते गुदगुदाया है तो कभी चाय की चुसकियों के संग हँसाया है।
ये मेरे अनमोल लम्हे,ये खुशियों से भरे पल हर दम मेरे दिल के अज़ीज हैं,हरदम मेरे दिल के करीब हैं।
-शालिनी गर्ग
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