अर्जुन की अधीरता दृष्टि पहुँची अर्जुन की तभी, पितामह और गुरू द्रोण पर, क्रोध थामकर, हाथ रोककर बोला अर्जुन कुछ सोचकर । हे अच्युत! हे गोविंद! कृपया रथ को मध्य में ले जाइए, जिनके साथ संघर्ष है मेरा, उनका अवलोकन कराइए। देखूँ तो उस सेना में, कौन-कौन दुर्योधन का चाहतें हैं भला, कितने महाराजा साथ है उसके,और कैसा उसने है व्यूह रचा। कृष्ण तो हृषिकेश हैं, वे हम सबके हृदय के स्वामी हैं, पहचान गए अर्जुन के हृदय की पीडा, वे तो अंतर्यामी हैं। अर्जुन जो गुड़ाकेश है नींद को भी जिसने वश में किया है, पर क्यों वह अज्ञानी बनकर, इस समय सपनों में फँसा है। वैसे अर्जुन के हृदय में ये ,मोह कृष्ण ने स्वयं रचा था, इस गीता के ज्ञान द्वारा ,हम सबका उद्धार छिपा था। लो! सारे कुरूओं को देखो, लाए कृष्ण मध्य में रथ, चाचा, मामा, ससुर, भाई, पुत्र ,पोत्र और शुभचिंतक। जैसे ही आँख उठाई अर्जुन ने ,दिखा सारा अपना परिवार, बचपन बीता था संग जिनके,पाया था जिनका लाड दुलार। ओह! कितना हूँ निर्लज मैं, अपनों का वध करने चला हूँ, थोड़ी सी भूमि पाने के लिए पाप ये कैसा करने लगा हूँ। सोचकर यह सब उसके शरीर का अंग अंग काँप गया, त्वचा अग्नि स...