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Showing posts from June, 2020

एक दिन की मोहलत माँग लेना

Bhagavad Gita Chapter 1 Part 2 ( अर्जुन की अधीरता )

अर्जुन की अधीरता दृष्टि पहुँची अर्जुन की तभी, पितामह और गुरू द्रोण पर, क्रोध थामकर, हाथ रोककर बोला अर्जुन कुछ सोचकर । हे अच्युत! हे गोविंद! कृपया रथ को मध्य में ले जाइए, जिनके साथ संघर्ष है मेरा, उनका अवलोकन कराइए। देखूँ तो उस सेना में, कौन-कौन दुर्योधन का चाहतें हैं भला, कितने महाराजा साथ है उसके,और कैसा उसने है व्यूह रचा। कृष्ण तो हृषिकेश हैं, वे हम सबके हृदय के स्वामी हैं, पहचान गए अर्जुन के हृदय की पीडा, वे तो अंतर्यामी हैं। अर्जुन जो गुड़ाकेश है नींद को भी जिसने वश में किया है, पर क्यों वह अज्ञानी बनकर, इस समय सपनों में फँसा है। वैसे अर्जुन के हृदय में ये ,मोह कृष्ण ने स्वयं रचा था, इस गीता के ज्ञान द्वारा ,हम सबका उद्धार छिपा था। लो! सारे कुरूओं को देखो, लाए कृष्ण मध्य में रथ, चाचा, मामा, ससुर, भाई, पुत्र ,पोत्र और शुभचिंतक। जैसे ही आँख उठाई अर्जुन ने ,दिखा सारा अपना परिवार, बचपन बीता था संग जिनके,पाया था जिनका लाड दुलार। ओह! कितना हूँ निर्लज मैं, अपनों का वध करने चला हूँ, थोड़ी सी भूमि पाने के लिए पाप ये कैसा करने लगा हूँ। सोचकर यह सब उसके शरीर का अंग अंग काँप गया, त्वचा अग्नि स...

Bhagavad Gita Chapter 1 part 1 ( युद्ध की तैयारी )

युद्ध की तैयारी दोनो सेना तैयार खड़ी थी, कुरुक्षेत्र के मैदान में, धर्म का वो स्थल था,क्योंकि भगवान कृष्ण थे साथ में। अर्जुन के सारथी बन,चक्र छोड लगाम थाम ली, अपनी पूरी सेना उन्होंने कौरवों के नाम की। धृतराष्ट्र नेत्रहीन तो था ही,धर्म से भी अंधा था, अपने पुत्रो और पांडवों में भेद सदा ही करता था। पुत्रमोह के कारण उसने, युद्ध का बीज रोपा था, धृतराष्ट्र के मन में अब, जीत का संदेह उपजा था। धृतराष्ट्र बोले,हे संजय! अब अपनी दिव्य दृष्टि खोलो, युद्ध क्षेत्र में क्या है घट रहा,सारा वर्णन मुझसे बोलो। संजय बोले,हे राजन!मुझसे अब रणक्षेत्र का हाल सुनो, बड़े-बड़े व्यूह में सज गई हैं, आमने सामने सेनाएँ दोनों। दुर्योधन उठ कर चला है, शायद गुरुद्रोण को नमन करने, पर वो गया था सेनापति द्रोण की, दुर्बलता को दर्शाने। आपके प्रिय शिष्य हैं पाण्डव, उदारता उनपर ना दिखलाना, अर्जुन हो या द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, सबको शत्रु ही मानना। आपकी शिक्षा पाकर ही आज, धृष्टद्युम्न ने ये व्यूह रचा है, आपके शत्रु का बेटा था वो ,पर आपकी उस पर बड़ी कृपा है। सेना छोटी है पांडवों की, पर महारथी राजा और वीर पुत्र हैं, विराट ,युयुध...

गीता की महिमा

गीता की महिमा वैदिक ज्ञान का सार है गीता, जीवन जीने का है ये तरीका ।। भगवान के मुख से है कही हुई, यह औषधि स्वयं कृष्ण की दी हुई।। पहले भी कही थी यह सूर्य देव को, वापिस दोहरा रहे हैं कृष्ण अर्जुन को।। पहले तो अर्जुन ने कृष्ण को गुरु स्वीकारा, जब ज्ञान हुआ तो उन्हें भगवान पुकारा।। पर पूछता रहा प्रश्न अंत तक वो डटकर, संशय का बादल जब तक उड न गया छट कर।। अर्जुन का ज्ञान पाना तो एक बहाना था, वास्तव में तो उन्हे हमें ही सब बताना था।। अगर जरा सी श्रद्धा है तो सुनना जरूर, गीता का ये वाणी अमृत दिल से पीना जरूर ।। गीता का मकसद हमसे पहचान है कराना, हमारा सत्य स्वरूप क्या है हमें यह बताना।। हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? हममें और पशुओं में अंतर क्या है ? वह परमपिता है हमारे, उनसे पुराना रिश्ता है, एकजन्म का नहीं जन्मजन्मों का यह नाता है।। हम भूल गए है जो संबंध वो फिर से बनाना है, अपने मन बुद्धि को केवल कृष्ण में ही लगाना है।। कृष्णा नाम का ही सदास्मरण करके, कर्मों के फल को उन्हें अर्पित करके, उनके चरण कमलों मे ध्यान लगाना है जीवन मरण के चक्र से मुक्ति पाना है चाहे कर्म कर कर, चाहे ध्यान लगाकर, चाह...