अर्जुन की अधीरता
दृष्टि पहुँची अर्जुन की तभी, पितामह और गुरू द्रोण पर,
क्रोध थामकर, हाथ रोककर बोला अर्जुन कुछ सोचकर ।
हे अच्युत! हे गोविंद! कृपया रथ को मध्य में ले जाइए,
जिनके साथ संघर्ष है मेरा, उनका अवलोकन कराइए।
देखूँ तो उस सेना में, कौन-कौन दुर्योधन का चाहतें हैं भला,
कितने महाराजा साथ है उसके,और कैसा उसने है व्यूह रचा।
कृष्ण तो हृषिकेश हैं, वे हम सबके हृदय के स्वामी हैं,
पहचान गए अर्जुन के हृदय की पीडा, वे तो अंतर्यामी हैं।
अर्जुन जो गुड़ाकेश है नींद को भी जिसने वश में किया है,
पर क्यों वह अज्ञानी बनकर, इस समय सपनों में फँसा है।
वैसे अर्जुन के हृदय में ये ,मोह कृष्ण ने स्वयं रचा था,
इस गीता के ज्ञान द्वारा ,हम सबका उद्धार छिपा था।
लो! सारे कुरूओं को देखो, लाए कृष्ण मध्य में रथ,
चाचा, मामा, ससुर, भाई, पुत्र ,पोत्र और शुभचिंतक।
जैसे ही आँख उठाई अर्जुन ने ,दिखा सारा अपना परिवार,
बचपन बीता था संग जिनके,पाया था जिनका लाड दुलार।
ओह! कितना हूँ निर्लज मैं, अपनों का वध करने चला हूँ,
थोड़ी सी भूमि पाने के लिए पाप ये कैसा करने लगा हूँ।
सोचकर यह सब उसके शरीर का अंग अंग काँप गया,
त्वचा अग्नि सी जलने लगी और संताप से मुँह सूख गया।
हाथों से थामा था गाण्डीव, वह गाण्डीव भी खिसक गया,
सिर चकरा गया अर्जुन का और पैर भी लडखडा गया।
हाथ जोडकर बोले अर्जुन, युद्ध का परिणाम अमंगल होगा,
चाहे पक्ष में हो या विपक्ष में,मेरे स्वजनों का ही वध होगा।
जीत में मिल जाए तीनों लोक,अब मुझ को स्वीकार नहीं,
अपनों के खून से सने, राज सिंहासन से मुझे प्यार नहीं।
तातश्री के पुत्रों का वध कर मैं, कैसे खुश रह पाऊँगा,
इन सब की बलि देकर तो मैं, केवल पाप कमाऊँगा।
वे भरतवंशी हैं, कुटुंबी हैं मेरे, मैं कैसे कुटुंब का नाश करूँ?
हे माधव इससे अच्छा तो मैं, भिक्षु बन वन में वास करूँ।
माना दुर्योधन पापी है, दुराचारी है, उसमें है लोभ भरा,
पर पापी का मारने से तो, पाप को मारना होता है बडा।
मैं पाप के सागर में जानबूझकर डूबना नहीं चाहता हूँ,
यह गाण्डीव मैं रखता हूँ अब, युद्ध करना नहीं चाहता हूँ।
युद्ध में चाहे कोई जीते पर मृत्यु का तांडव होगा,
कितना अधर्म फैलेगा और कितने कुलो का नाश होगा
पुरुषों के मर जाने पर वृद्धों को कौन संभालेगा ?
पितरों का कौन पिंडदान करेगा,बच्चों को कौन पालेगा?
बच्चे मार्ग भटक सकते हैं ,स्त्रियाँ पतित हो सकती हैं,
धर्म और समाज की व्यवस्था अव्यवस्थित हो सकती है।
केवल राज पाने के लिए,अब ये विनाश नहीं होने दूँगा,
यह दृढ़ निश्चय है मेरा, अब अपना शस्त्र नहीं उठने दूँगा।
अर्जुन ने शोकमग्न होकर अपना धनुष कोने पर रख दिया ,
शांत होकर निर्णय लेकर अब आसन पर वो बैठ गया।
-शालिनी गर्ग
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