कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान
हिमालय है जिसकी आन,
गंगा यमुना है जिसकी शान,
और हम सब में बोलती हिन्दी भाषा है जिसकी जान,
कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
वो बारिश में भीगे,
फूलों की खुशबू से महके,
ठंडी हवा के झोखों में जहाँ,
गूंजे शिवा का नाम ।
कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
कभी भैया से झगडा,
कभी बहना से तकरार,
कभी मम्मी पापा का लाड़ और दुलार,
और हाँ कभी कभी सासु माँ के तानो की तान,
कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
वो हाथों में भरी भरी काँच की चूडियाँ,
बालों मे गजरा,माथे पे बिन्दया,
पैरो में बजता पायल का छनछान,
कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
मम्मी के हाथों की मक्का की रोटी,
दादी के लड्डू मठरी और अचार,
और नानी का मीठा गुलकंद का पान,
कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
वो शादी की मस्ती ,त्योहारों के खान,
सखियों संग ठिठोली, चाय के जाम,
उस पे बिना खबर के मेहमानो का आन,
कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान ।
-शालिनी गर्ग
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