"अध्यात्मिक और भौतिक जगत” भगवान भौतिक जगत को एक वृक्ष द्वारा समझाते हैं। यह वृक्ष आध्यात्मिक जगत का प्रतिबिंब है बतलाते हैं।। इस वृक्ष को जानने वाला वेदों का ज्ञाता कहलाता है। पत्तियाँ वैदिक स्तोत्र इसकी , अश्वत्थवृक्ष कहलाता है।। जड़े तो इसकी ऊपर बढ़ती , शाखाएं नीचे फैलती हैं। ये जल नहीं प्रकृति के तीन गुणों से पोषित होती हैं।। शाखाओं के सिरे इंद्रियाँ व इंद्रिय विषय टहनियाँ है। सहायक जडें राग-द्वेष हैं जो कष्टों की दुनियाँ है।। कुछ जड़े नीचे जाती वे सकाम कर्मों से बाँधती हैं। ऊपर की जडें हमें ब्रह्मलोक का मार्ग दिखलाती हैं।। इस अश्वत्थ वृक्ष का वास्तविक स्वरूप क्या होता है ? इस जग में हमको इसका अनुभव नहीं हो सकता है।। इस वृक्ष का न कोई आदि-अंत है न कोई आधार है। इसकी जडें काटने का शस्त्र , व...
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