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Showing posts from October, 2020

"अध्यात्मिक और भौतिक जगत”

 "अध्यात्मिक और भौतिक जगत”                                                                                   भगवान भौतिक जगत को एक वृक्ष द्वारा समझाते हैं। यह वृक्ष आध्यात्मिक जगत का प्रतिबिंब है बतलाते हैं।। इस वृक्ष को जानने वाला वेदों का ज्ञाता कहलाता है। पत्तियाँ वैदिक स्तोत्र इसकी , अश्वत्थवृक्ष कहलाता है।।  जड़े तो इसकी ऊपर बढ़ती , शाखाएं नीचे फैलती हैं। ये जल नहीं प्रकृति के तीन गुणों से पोषित होती हैं।। शाखाओं के सिरे इंद्रियाँ व इंद्रिय विषय टहनियाँ है। सहायक जडें राग-द्वेष हैं जो कष्टों की दुनियाँ है।। कुछ जड़े नीचे जाती वे सकाम कर्मों से बाँधती हैं। ऊपर की जडें हमें ब्रह्मलोक का मार्ग दिखलाती हैं।। इस अश्वत्थ वृक्ष का वास्तविक स्वरूप क्या होता है ? इस जग में हमको इसका अनुभव नहीं हो सकता है।। इस वृक्ष का न कोई आदि-अंत है न कोई आधार है। इसकी जडें काटने का शस्त्र , व...

अध्याय 6 योग द्वारा मन पर नियंत्रण

    अध्याय   6 अध्याय 6   योग द्वारा मन पर नियंत्रण  कर्मफल की इच्छा बिना , जो करता कर्तव्य का पालन। वही योगी बन सकता है , ऐसा अर्जुन से बोले भगवन।। कर्म को छोडकर कोई मनुष्य , योगी नहीं बन सकता। सन्यासी के लिए इंद्रियभोग , छोडने की है आवश्यकता।। पहले योगी अष्टांग योग का निरंतर अभ्यास करता है।। यम , नियम , आसन के द्वारा , ध्यान लगाता रहता है। योगसिद्धि के मिलने पर , वह योगारूढ बन जाता है। तब जाकर वह अपने , भौतिककर्मों से सन्यास पाता है।। जो मन को अपना मित्र बना ले , उसका होता है उद्धार। मन अगर शत्रु बन जाए तो नही हो सकती नैया पार।। बुद्धि से मन   जीतकर , मन सच्चा मित्र बन पाता है। हार गई बुद्धि मन से तो , भयंकर शत्रु हो जाता है।। मन को बच्चा समझकर हमें उसको समझाना होता है। नहीं तो वह वानर की भाँति उथल पुथल मचाता है।। सर्दी-गर्मी हो , या सुख-दुख हो , चाहे हो मान-अपमान।। विचलित नहीं होता है जो , करता खुद को एकसमान।। जितेंद्रिय बन जाता है , आत्म ज्ञान से करता संतुष्टी। खुशी या गम नहीं होता , चाहे सोना मिले या मिट्ट...