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Showing posts from October, 2021

स्कूल के दिन

  ये स्कूल के दिन हम कहो कैसे भूल पायेंगे ये दोस्ती की कश्ती हम अब किधर पायेंगें दिल के बस्तों में अब यादों के मोती सजायेंगें ये दिन यारों लौट लौट कर हम   याद आएँगे ये स्कूल के दिन हम कहो कैसे भूल पायेंगे ये दोस्ती की कश्ती, हम अब किधर पायेंगें जल्दी जल्दी उठना और जल्दी जल्दी नहाना जल्दी जल्दी से टाई को गले में लटकाना बस को पकड़ने के लिये जल्दी जल्दी भागना और जूते के फीतों को तो बस में ही बाँधना इन सब झमेलो से तो सही है बच जाएँगे ये स्कूल के दिन हम कहो कैसे भूल पायेंगे ये दोस्ती की कश्ती, हम अब किधर पायेंगें क्लास में बहानों की भी पाठशाला चलती थी नये नये बहाने पर दोस्तों की दाद मिलती थी टीचर भी सब जानकर अंजान बनती फिरती थी सारे बहानों की सजा रिपोर्टकार्ड में ही दिखती थी पर वो बहानों की माला अब किसको पहनाएँगें ये स्कूल के दिन हम कहो कैसे भूल पायेंगे ये दोस्ती की कश्ती हम अब किधर पायेंगें ब्रेक के टाइम का कितना इंतजार रहता था टिफिन तो ब्रेक से पहले ही उड लेता था कैंटीन की धक्कामुक्की में बाजी जो जीत लेता था, वही तो हम सबकी शाबासी का ...

रिश्तों की चादर

    माँ तूने मुझे सिखाया कपडे तुरपना ,  मैं तो रिश्ते की चादर तुरपती रही, रोज सुबह तुरपती हूँ पर शाम को उधड जाती है। मेरे सब्र का धागों की सीमा छोटी होती जाती है।। लगता है आज टाँका मजबूत है ये चल जायेगा, पर मेरा धागा है कच्चा, ये कब मुझे समझ आयेगा, मेरी सूई भी अकसर मुझे ही मुँह चिढाती है, मेरी जरूरत तुझे रोज रोज क्यूँ रहती है।। तेरी सहेली हूँ मैं लेकिन उसकी तो कैंची से यारी है, तू कितना भी जोड लगा ले, ये कैची मेरे पर भारी है।। समझा देती हूँ उसे मत मान तू अपने को छोटी, ये छोटी छोटी कोशिश भी बेकार नहीं होती। कहकर लग जाती हूँ फिर तुरपने अपनी फटी चादर, आँखों में आशाओ के चश्मे को चढाकर।।   शालिनी गर्ग

तरकारियों की सीख

  तरकारियों की सीख आज रसोई की तरकारियाँ, सिखा रहीं मुझे प्रेम करना , अपनी अपनी खूबी से दिखा रहीं प्रेम को गढ़ना। इठलाकर बोली ये प्याज, मानले तू मेरा अंदाज   अपने प्रेम की खुशबू से उसका अँगना महका देना, पर काटे तुझको जो यूँ ही, आँसु उसे पिला देना। बोला टमाटर, थोडा ठहरकर, मेरी बात पर भी गौर कर, अपने प्रेम की लाली से, जीवन उसका सँवार देना, सबकुछ उसका अपनाकर, जीवन का स्वाद बढा देना। बोला चुकंदर, आ जरा अंदर, कहता हूँ मै बात सुंदर बिखराकर प्रेम के रंग तू अपने रंग में रंग लेना। चाहे हो किसी भी ढंग का खुशियों का उसे संग देना। धनिया बोला, सुन मुनिया, छोटी सी है ये दुनिया, अपनी खूबसूरती से उसकी दुनिया को सजा देना। पिस कर भी तुम उसके घर की इज्जत को बचा लेना। मिर्ची बोली, सुन मेरी बच्ची, बनना पडता है कभी तिरछी सम्मान तू सबका करना पर अपना मान भी रखना, तीखी तलवार उठा लेना पर जुल्म ना सहन करना, बोला आलू ओ मेरी “शालू” मैं भी तो कुछ कह डालूँ मेरे जैसे सब में तू, आसानी से घुल मिल जाना सबको अपनाना प्रेम से पर, अपनी पहचान ना खो देना। आज रसोई की तरकारियाँ सिखा रहीं मुझे प्रेम करना , अपनी अपनी...

कृष्ण नाम पर घनाक्षरी छंद

  मुकुंद गोविंद बोलो , सुदर्शन चक्रधारी दामोदर जगन्नाथ , अच्यूतम गोपाला। यशोदानंदन बोलो , नंदलाल गिरिधारी , माखनचोर कन्हैया , मोहन वंशीवाला। द्वारिकाधीश बोलो , केशव राधेबिहारी कमयनयन हरि , ग्वाला मुरलीवाला वासुदेव कृष्ण बोलो , ब्रजजनभयहारी गोपियों का चित्तचोर , काली कमलीवाला  

कृष्ण भजन- लागी है लगन तुमसे, ओ मेरे कान्हा जी.

  लागी है लगन, तुमसे, ओ मेरे कान्हा जी...., मेरे प्यारे कान्हा जी.... मझधार में अब, छोडना नहीं... रूकता ही नहीं, तेरा नाम अब, होठों पर मेरे, सुनता ही नहीं, खोया है मन, प्रीत में तेरे, तुमरे बिन कुछ प्यारा लगता ना कान्हा जी मेरे प्यारे कान्हा जी निगाहें अब ये मोडना नहीं... लागी है लगन, तुमसे, ओ मेरे कान्हा जी...., मेरे प्यारे कान्हा जी.... मझधार में अब, छोडना नहीं... मीरा सी नहीं, दीवानी मैं, साँवरिया मेरे, पी नहीं सकती, विष का प्याला, प्रीत में तेरे, भक्त हूँ छोटी सी, मैं तुम्हरी,कान्हा जी.. मेरे प्यारे कान्हा जी.... प्रेम मेरा बस तौलना नहीं, लागी है लगन, तुमसे, ओ मेरे कान्हा जी...., मेरे प्यारे कान्हा जी.... मझधार में अब, छोडना नहीं... दिखता ही नहीं,दुख जो कभी, साथ था मेरे लगता है यही, तुम कहीं आस, पास हो मेरे प्रीत की ये डोर, बाँधे रहना कान्हा जी मेरे प्यारे कान्हा जी साथ मेरा अब छोडना नहीं लागी है लगन, तुमसे, ओ मेरे कान्हा जी...., मेरे प्यारे कान्हा जी.... मझधार में अब, छोडना नहीं...             ...

एक कविता होली का कुछ अलग रंग लेकर

  एक कविता होली का कुछ अलग रंग लेकर भैया कह देना बाबुल से इस साल भी होली खेलूँगी, पिचकारी नयनों की होगी, खुद ही गीली हो लूँगी। भैया कह ........... कभी लाल है कभी नीला है, रंगों से रोज का नाता है, ये रंग थोडा दुखता है भइया तन पर जब सज जाता है, ये रंग तभी उतरेंगें अब, जब श्वेत चादर ओढूँ लूँगी। भैया कह देना बाबुल से इस साल भी होली खेलूँगी, पिचकारी नयनों की होगी, खुद ही गीली हो लूँगी। होली हो या दिवाली भइया, मेरी तो रोज तैयारी है, पटाखों वाली आवाज की, मेरे गालों से सच्ची यारी है, मेरी दीवाली तभी मनेगी, जब तन का दीप जलालूँगी।।। भैया कह देना बाबुल से इस साल भी होली खेलूँगी, पिचकारी नयनों की होगी, खुद ही गीली हो लूँगी। देख बहना तुझको है सहना, थोडा धीरज रख लेना। होली दीवाली बीत जायेगी, होठों पर राखी बाँध देना। प्यारी लाडो इस साल भी कह दे, भैया मैं सब सहलूँगी ।। भैया कह देना बाबुल से इस साल भी होली खेलूँगी, पिचकारी नयनों की होगी, खुद ही गीली हो लूँगी। शालिनी गर्ग

आज के बच्चे AAJ KAE BACCHAE

    आज के बच्चे आज के बच्चो का भी अजब सा मिजाज़ है, उनकी हर साँस पर मोबाइल का अब राज़ है। मासूम लगते जब तक मोबाइल हैं लिये हुए, छीनते ही जिद्दीपन के शोर का आगाज़ है। आज के बच्चो का भी अजब सा मिजाज़ है, उनकी हर साँस पर मोबाइल का अब राज़ है। अपने अपने कमरों में शांत ऐसे पडे हुए , जैसे समझदारी का बज रहा कोई साज़ है। आज के बच्चो का भी अजब सा मिजाज़ है, उनकी हर साँस पर मोबाइल का अब राज़ है। मम्मी पापा टीचर से क्यूँ ये कुछ पूँछे भला, गूगल के हर जवाब पर रहता इनको नाज़ है। आज के बच्चो का भी अजब सा मिजाज़ है, उनकी हर साँस पर मोबाइल का अब राज़ है। पुकारने से इनको अब कुछ भी सुनता नहीं, कानों पर हैडफोन का पहना हुआ जो ताज़ है। आज के बच्चो का भी अजब सा मिजाज़ है, उनकी हर साँस पर मोबाइल का अब राज़ है। काम से पहले पूछते ये करना क्यों है ज़रूरी? टाइम मेरा होगा खराब कहते ये चालबाज़ हैं। आज के बच्चो का भी अजब सा मिजाज़ है, उनकी हर साँस पर मोबाइल का अब राज़ है।   चाचा, मामा, बूआ, मौसी संग चंद सी बात करें? हैलो, नमस्ते, ठीक हूँ, यही बस अलफाज़ ...