एक कविता होली का कुछ अलग रंग लेकर
भैया कह देना बाबुल से इस साल भी
होली खेलूँगी,
पिचकारी नयनों की होगी, खुद ही गीली हो लूँगी।
भैया कह ...........
कभी लाल है कभी नीला है, रंगों से
रोज का नाता है,
ये रंग थोडा दुखता है भइया तन पर जब
सज जाता है,
ये रंग तभी उतरेंगें अब, जब श्वेत
चादर ओढूँ लूँगी।
भैया कह देना बाबुल से इस
साल भी होली खेलूँगी,
पिचकारी नयनों की होगी,
खुद ही गीली हो लूँगी।
होली हो या दिवाली भइया, मेरी तो रोज
तैयारी है,
पटाखों वाली आवाज की, मेरे गालों से
सच्ची यारी है,
मेरी दीवाली तभी मनेगी, जब तन का दीप
जलालूँगी।।।
भैया कह देना बाबुल से इस
साल भी होली खेलूँगी,
पिचकारी नयनों की होगी,
खुद ही गीली हो लूँगी।
देख बहना तुझको है सहना, थोडा धीरज
रख लेना।
होली दीवाली बीत जायेगी, होठों पर
राखी बाँध देना।
प्यारी लाडो इस साल भी कह दे, भैया
मैं सब सहलूँगी ।।
भैया कह देना बाबुल से इस
साल भी होली खेलूँगी,
पिचकारी नयनों की होगी,
खुद ही गीली हो लूँगी।
शालिनी गर्ग
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