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Showing posts from January, 2022

मकर संक्राति कैसे मनी रवि और अवनि की प्रेम कथा

  एक था सजना एक थी सजनी एक था सजना एक थी सजनी, नाम थे उनके रवि और अवनि। रूठ गया था सजना कहीं जाकर, छुप गया था कहीं मुँह फुलाकर। अवनि सरदी से जम रही थी, नब्ज भी जैसे थम रही थी। रवि जी इतने नखरे क्यूँ करते, पहले भी तो थे हम पे मरते। एक पल ना नजर हटाते थे, प्रेम की अग्न से तपाते थे। सावन के मस्त महीने में, लुक छिप कर प्यार जताते थे। मेहनत के कमाये बादलों से, प्रेम सुधा का जल बरसाते थे। हरी चूड़ियाँ पहनकर मैं भी, फूलों की चुनरी ओढती थी। सजधज कर दुल्हन बनकर, बस आपका चेहरा तकती थी। पर अब क्यों रूठे हो पिया, खफ़ा खफ़ा से अजी दिखते हो। कुछ पल यहाँ दर्शन देते हो, ना जाने किस पर मरते हो। मैं श्वेत हिम शोल ओढकर, मुँह को छिपाती रहती हूँ। कब घर आएँगे पिया मेरे, इसी सोच में डूबी रहती हूँ। गलती हुयी जो माफ करो जी घर आ जाओ अब सैंया जी। अब 14 जनवरी आती है सैया रवि कहता है मान गया मैं ओ मेरी अवनि, तुम हो प्राण प्यारी संगिनी। तुम से दूर ना जा पाऊँगा, वापस लौट के घर ही आऊँगा। देखी जो झलक प्रिय रवि की, अवनी के हृदय में छाई शांति। ख...

गोपी गीत (हिंदी में)

  गोपी गीत ( हिंदी में ) रचयिता शालिनी गर्ग इंदिरा छंद 11121221212 ब्रज धरा हुआ, जन्म आपका, ब्रज निवास बैकुंठ धाम सा। मृदुल श्री प्रिया , आपकी रमा , प्रभु यहीं करें , संग आपका ।।1.1।। छिप गये कहाँ, साँवरे सखे, चरण धूल में, प्राण हैं पड़े। भटकती फिरें , नाथ दासियाँ। पकड कान को, माँग माफियाँ।।1.2।। हृदय में बसे, प्रेम से प्रिये, कमल नैन से,घायल किये। प्रभु कहो जरा,प्रीत क्या नहीं, वध किया बिना,अस्त्र के यहीं।।2।। असुर मारते, मारते रहे, ब्रजधरा सदा, तारते रहे।   रक्षक गोप के, आप ही रहे, हँस दिये सदा, नाचते रहे।।3।। तुम लला बने, मात के लिये, चक्र उठा लिया, विश्व के लिये। हृदय में सभी, जीव के बसे, जगत ये चले, कृष्ण आप से।।4।। तुम हरो हरि S , कामना सभी, शरण पड़े जो, आपके कभी। अभय देत हो, जन्म मृत्यु से, जब रखो कृपा, हस्त शीश पे ।।5।। दुख मिटा दिये, शांत श्याम ने, मद चुरा लिये, प्रेम ज्ञान ने। किशन रूठ के, ना सताइये, नमन आपको, मान जाइये।।6।। चरण आपके, पाप को हरें, कमल वासिनी भी यहीं रहें।   पग धरें कभी, नाग सर...

चाय पर प्रेम कहानी

  चाय पर प्रेम कहानी वो हमारी पहली मुलाकात,  मेरा तुम्हारा और चाय का साथ,  देखा तुमने मुझे पहली बार और पूछा  क्या पसंद है तुम्हें मैने कहा चाय, और तुमने कहा चाय पर पहले आप। फिर क्या, मिल गये हम चाय की तरह, तुम जल से निर्मल, मैं दूध सी कोमल,  और डल गई दोनो के प्रेम की मिठास, पीते साथ साथ, सुबह हो,शाम हो, चाहे हो रात। धीरे धीरे मुझे अदरक की चीनी वाली,  तुम्हें इलायची की शक्कर वाली भाने लगी, प्रेम की बातें अब बच्चों की शिकायतों पर आने लगी, पर एक सुकून तुम्हारे और मेरे चेहरे पर होता था। इन शिकायतो मे भी प्यार का इजहार तो होता था। समय बीता अब तुम्हे ग्रीन टी हैल्दी लगने लगी, पर मैं अपनी अदरक वाली स्वीटी पर ही डटी रही, तुम्हे अब चाहिये था पानी में एक उबाल, टी बैग और हनी, पर मेरी चाय तो सदा से रझती हुई अदरक वाली ही बनी,  चुस्कियो का स्वाद अब अलग अलग सा होने लगा,  तुम सिप लेने लगे मेरा घूँट तुम्हे ओल्डफैशन लगने लगा,  तुम अखबार से मोबाइल, मोबाईल से नैटफिलिक्स पर आ गये,  मैं कल क्या बनेगा, इस पर ही अटकी रही,और चाय पीती रही। पर सुबह,शाम, रात का मेर...

मदिरा सवैया छंद ( श्रंगार रस )

  चंचल नैन मिले जब से मन भूल गया अपनी अखियाँ। मस्त हुआ उनकी धुन पे मन भूल गया अपनी बतियाँ। चाहत की एक ड़ोर बँधी मन भूल गया अपनी सखियाँ। झूम रहा अब प्रीत भरा मन भूल गया अपनी गलियाँ।