एक था सजना एक थी सजनी एक था सजना एक थी सजनी, नाम थे उनके रवि और अवनि। रूठ गया था सजना कहीं जाकर, छुप गया था कहीं मुँह फुलाकर। अवनि सरदी से जम रही थी, नब्ज भी जैसे थम रही थी। रवि जी इतने नखरे क्यूँ करते, पहले भी तो थे हम पे मरते। एक पल ना नजर हटाते थे, प्रेम की अग्न से तपाते थे। सावन के मस्त महीने में, लुक छिप कर प्यार जताते थे। मेहनत के कमाये बादलों से, प्रेम सुधा का जल बरसाते थे। हरी चूड़ियाँ पहनकर मैं भी, फूलों की चुनरी ओढती थी। सजधज कर दुल्हन बनकर, बस आपका चेहरा तकती थी। पर अब क्यों रूठे हो पिया, खफ़ा खफ़ा से अजी दिखते हो। कुछ पल यहाँ दर्शन देते हो, ना जाने किस पर मरते हो। मैं श्वेत हिम शोल ओढकर, मुँह को छिपाती रहती हूँ। कब घर आएँगे पिया मेरे, इसी सोच में डूबी रहती हूँ। गलती हुयी जो माफ करो जी घर आ जाओ अब सैंया जी। अब 14 जनवरी आती है सैया रवि कहता है मान गया मैं ओ मेरी अवनि, तुम हो प्राण प्यारी संगिनी। तुम से दूर ना जा पाऊँगा, वापस लौट के घर ही आऊँगा। देखी जो झलक प्रिय रवि की, अवनी के हृदय में छाई शांति। ख...
Welcome to my poetry page. I like writing impactful Hindi poems and I post them here.