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मदिरा सवैया छंद ( श्रंगार रस )

 चंचल नैन मिले जब से मन भूल गया अपनी अखियाँ।

मस्त हुआ उनकी धुन पे मन भूल गया अपनी बतियाँ।

चाहत की एक ड़ोर बँधी मन भूल गया अपनी सखियाँ।

झूम रहा अब प्रीत भरा मन भूल गया अपनी गलियाँ।

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