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Showing posts from January, 2024

हरा श्लेष अलंकार

  जख्म को कर दिया हरा, यादों नें कुरेद कर वक्त ने हरा दिया हमें, अपनी हर चाल भेदकर जब भजा हरि को ह्रदय से, हर दुख मेरा हर लिया खुशियों का रंग हरा, जीवन में फिर भर दिया     

स्वयं के राम को पुकार लो

  राम का है नाम सत्य, राम का है काम सत्य राम को जीवन में तुम उतार लो काम क्रोध लोभ अहम, राक्षस यही करो दहन प्रेम त्याग दान को स्वीकार लो ऊच नीच भेद भाव, राम के नही ये भाव दीन को भी प्यार से सँवार दो जान लो अपनी पहचान, आप में छिपे हैं राम स्वयं के राम को पुकार लो, राम ही जीवन।।  

लिखती हूँ मैं छंद (कृपाण घनाक्षरी)

  विषय- कृपाण घनाक्षरी  ह्रदय में उठते द्वंद, भरती भाव सुगंध, लिखती हूँ मैं छंद, कलम से मंद मंद।  कभी लिखूँ प्रेम रंग, कभी जीवन की जंग, कभी कल्पना तरंग, कभी गुजरा प्रसंग। पढ पढ होती दंग, गाती भी मै संग संग, दुख नहीं करे तंग, बढती आशा उमंग। हौसले होते बुलंद, मन में बसे आनंद, लगे खाया कलाकंद, जब भी लिखूँ मैं छंद।