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अवधूत गीता दत्तात्रेय के 24गुरु श्रीमद भागवतम से

 


चौबीस गुरू बता दिये, दत्तात्रेय भगवान।

देखो कौन कौन दिये, ज्ञानवान को ज्ञान।।

 

1.पहली गुरु पृथ्वी कहें, सहन करे आघात।

मात बनकर क्षमा करे, पोषण दे दिन रात।।1।।

 

2.दूजा गुरु बहता पवन, रहता सदा स्वछंद।

  दोष रहित पावन सतत, कर ले कोई संग।।2।।

 

 3.तीजा गुरु आकाश है, सीमा अपरम्पार

  सजे ब्रह्मांड गोद में, करता अहंकार।।3।।

 

4. चौथा गुरु शीतल सरल, जल है जिसका नाम।

  भेदभाव जाने नहीं, जीवन देना काम ।।4।।

 

5. अग्नि सिखाती है हमें, चमको जैसे धूप।

   जिसे मिलों ऐसे मिलो, दे दो अपना रूप ।।5।।

 

6. बढता घटता चाँद गुरु, होता नहीं निराश।

  धरती को दे चाँदनी, मांग रवि से प्रकाश ।।6।।

 

7.  सूरज गुरु चमके सदा, करे नहीं विश्राम।

   धूप, ताप, वर्षा सभी, देना उसका काम ।।7।।

 

8. बता कबूतर गुरु दिये, मत करना तुम लोभ।

  विवेक हर लेगा तभी, दे जायेगा शोक ।।8।।

 

9. गुरु अजगर सिखला रहे, करना तुम संतोष

   भागदौड ये व्यर्थ की, देती है बस रोष।।9।।

 

10. गहरा सागर शांत गुरु, रत्नों का भंडार।

   नदियों को भी थाम ले, सीमा करे पार।।10।।

 

11. झूठी माया की चमक, करना नही लगाव।

    सीख पतंगा दे गया, जला देह में आग।।11।।

 

12. पुष्प-पुष्प भौरा फिरे, चुनता रहे पराग।
    अमृत बटोरा गुरु चले, छोड गये अनुराग ।।12।।

 

13. काम वासना मति हरे, सिखा रहा गजराज।

    मोह प्रेयसी का दिखा, ले गया जालसाज।।13।।

 

14. मधुमक्खी भी सीख दे, संचय करो जरूर।

    ले जाता कोई चुरा, करना नहीं गुरूर ।।14।।

 

15. मार कुलाचे मृग कहे, मौज करो दिल खोल।

   चौकस भी रहना मगर, बज जाये जब ढोल।।15।।

 

16. जिह्वा का लालच बुरा, मछली देती ज्ञान।

    स्वाद भरा ये जाल है, फँस जायेंगे प्राण।।16।।

 

 

 

17.कंचनी पिंगला कहे, बेच मत स्वाभिमान।

   सच्चा सुख आनंद पा, करके भगवत ध्यान।।17।।

 

18. बाज कहे माया मिले, चिंता करते  प्राण।

   माया टुकड़े छोड दे ,जीवन कर आसान।।18।।

 

19. बालक से मैं सीखता, सरल हृदय का ज्ञान।

    प्रश्न जिज्ञासा से करें, पर छल से अनजान।।19।।

 

20. चूड़ी बाला की कहे, लक्ष्य रखो बस एक।

   काम बढ़े सब शांति से, खनखनाती अनेक।।20।।

 

21. तीर बनाते गुरु मिला, दे गया अमित ज्ञान

   रहो तल्लीन काम में, हलचल पर क्यों ध्यान।।21।।

 

22.  गुरु भुजंग समझा रहे, बनाओ निजधाम।

    देख बसेरा ठहर जा, जग का कर कल्याण।। 22।।

 

23.स्वयं बुना जाला निगल, मकडी नहीं उदास

   जगत रचयिता यह करें, करके सृजन विनाश।। 23।।

 

24. भृंगी कीडा कह रहा, शक्ति स्वयं की जान

   रूप मिलेगा तब वही, जिसे करेगा ध्यान।।24।।

शालिनी गर्ग

 

 

 

 

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