पितरों का पर्व आता, ढ़ेर सारी यादें लाता,
परंपराये संस्कार, हमें
भी निभाने है।
प्रेम से भोज बनायें, ब्राह्मन
घर बुलाये,
दान दक्षिणा देकर, आशीर्वाद
पाने है,
कुल की सुख समृद्धि, पितरो
ने सदा चाहीं,
हमें सपने उनके, सच कर जाने
हैं।
आपसी द्वेष भुलायें, कुटुंब
प्रेम बढ़ाये,
श्रद्धा सम्मान देकर, पर्व
ये मनाने हैं।
शालिनी गर्ग
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