कहानी सात मैं कौन शरीर
या आत्मा
राहुल के विडियो सबको बहुत पसंद आ रहे थे।
राहुल को लेकिन अब विडियो से ज्यादा दादाजी से गीता को सुनने में, समझने में अच्छा लग रहा था। वह जो भी सुनता था उस पर बहुत विचार भी करता था कि ये
कैसे हुआ? आगे क्या होगा ?वह सोच रहा था कि भगवान ने कैसे चुटकी बजाकर समय को रोक
दिया।
[राहुल चुटकी बजाते हुए और
गुनगुनाते हुए दादाजी के पास आता है]
"ए वक्त रुक जा, थम जा, ठहर जा... दादाजी, भगवान
जी ने भी यही कहा होगा ना जब उन्होंने चुटकी बजाकर वक्त को रोका था?"
दादाजी (हँसते हुए):
"हाँ मेरे शाहरुख खान, बिल्कुल यही कहा
होगा! लेकिन अब चुटकी बजाना बंद करो, आज अर्जुन को बहुत गहरी
बात बताने वाले हैं ।भगवान जी ,तो ध्यान से सुनो और शांति से बैठो, बेटा जी।"
राहुल (मुस्कुराते हुए):
"ठीक है, दादाजी! मैं वीडियो बनाना शुरू
करूँ या आपको कुछ पूछना है?"
"नहीं नहीं, तेरी चुटकी ने ही सब बता
दिया! अब तू शुरू कर।"
राहुल
"लेकिन दादाजी, आप कुछ भूल रहे हैं! आपने
भगवान श्रीकृष्ण के पाँच नाम पूछे थे, और मैं अर्थ सहित गूगल
से ढूंढ लाया हूँ। क्या मैं बताऊँ?"
दादाजी
हाँ हाँ, बताओ राहुल। देखते हैं, कितनी अच्छी तरह समझा है तुमने!"
राहुल: [राहुल चेहरे पर उत्साह के साथ चहकते हुए बताता है,]
तो पहला नाम
कृष्ण– इसका अर्थ है
जो बहुत आकर्षक हैं और सभी को अपनी ओर खींचते
हैं।
गोविंद– जो गायों को और हमारी इंद्रियों को आनंद देते है ।
मोहन– जो अपनी लीलाओं से सभी को मोहित कर लेते हैं।
घनश्याम–बादल के समान सुंदर श्यामरंग वाले।
द्वारकाधीश– जो द्वारका के नाथ (राजा) हैं।
दादाजी (मुस्कुराते
हुए): क्या बात है, राहुल,!
तुमने मुझे खुश कर दिया। चलो, अब हम गीता पर आते हैं।
[दादाजी अब गंभीर होकर
बोलना शुरू करते हैं]
दादाजी:
भगवान कृष्ण अब अर्जुन से कहते हैं, "हे अर्जुन! यहाँ युद्ध में तुम जितने राजा देख रहे हो, वे पहले भी जन्म लेकर इस पृथ्वी पर आए थे, फिर कुछ समय जीवन जीने के बाद मृत्यु को प्राप्त हुए और फिर
से जन्म लिया। इस तरह जन्म और मृत्यु का चक्र चलता रहता है।"
राहुल (उत्सुकता से):
दादाजी, धीरे-धीरे बताइए ना! तो भगवान ने कहा कि मरने के बाद फिर से
जन्म होता है? सबका? आपका, मेरा,? क्या मरने के बाद सबका फिर से जन्म हुआ है?
दादाजी:
हाँ, राहुल, भगवान
यही कहते हैं—सबका जन्म फिर से होता है।
राहुल (आश्चर्य से):
अच्छा, दादाजी, ऐसा
होता है?
दादाजी:
हाँ, बेटा! और भगवान एक और महत्वपूर्ण बात कहते हैं—"तुम एक
आत्मा हो, शरीर नहीं।"
राहुल (हैरानी से):
क्या दादाजी? मैं एक आत्मा हूँ? मैं यह शरीर नहीं हूँ?
दादाजी:
हाँ, राहुल! यह शरीर तो बस हमारा बाहरी आवरण (outer
covering) है।
राहुल (अपने हाथ को
देखकर): अगर यह शरीर मैं नहीं हूँ, तो क्या यह मेरा हाथ भी मेरा नहीं है?
दादाजी:
हाँ, हाथ तुम्हारा है, पर हाथ 'राहुल' नहीं है।
राहुल (सोचते हुए):
ओह! यानी, यह शरीर मेरा है, लेकिन मैं यह शरीर नहीं हूँ?
दादाजी (सर हिलाते हुए):
बिलकुल!
[राहुल गंभीर होकर फर्श
पर पालथी मारकर बैठ जाता है]
राहुल (धीरे धीरे शांत
स्वर में,):
मैं शरीर नहीं... मैं एक आत्मा हूँ... मैं एक
शांत, प्रसन्नचित्त आत्मा हूँ।
आत्मा अज़र अमर है ये शरीर नश्वर है [फिर हँसते हुए] अरे, दादाजी, ऐसा तो मैंने आपके आस्था चैनल पर सुना है!
[राहुल दर्पण में खुद को
देखता हुआ
थोड़ा खीझकर कहता है: लेकिन
दादाजी, यह
आत्मा-वाला कांसेप्ट मुझे समझ नहीं आ रहा! मिरर में तो मैं राहुल को ही देख रहा
हूँ! आत्मा को कैसे देखूँगा? मैं आत्मा
कैसे हो सकता हूँ? आत्मा मेरे
अंदर है दादाजी जैसे मेरा हाथ है मैं हाथ नही वैसे ही मेरे अंदर आत्मा है मैं
आत्मा नहीं ये सही है ना दादा जी ।
दादाजी:
राहुल, यह समझना थोड़ा कठिन है, लेकिन मैं तुम्हें एक उदाहरण से समझाता हूँ।
दादाजी:
यह मोबाइल देखो... अगर ये मोबाइल फोन टूट जाए
राहुल (जल्दी से):
दादाजी, ऐसा मत बोलिए! मेरा नया मोबाइल है!
दादाजी (मुस्कुराते
हुए): यही मोह तो दूर करना है, राहुल! अच्छा, बताओ, अगर
मोबाइल से सिम कार्ड निकाल दिया जाए, तो क्या उससे फोन किया जा सकता है?
राहुल:
नहीं!
दादाजी:
और अगर वही सिम कार्ड किसी दूसरे फोन में डाल
दो और मुझे कॉल करो, तो कॉल किस नाम से आएगा?
राहुल (सोचते हुए):
राहुल के नाम से ही आएगा दादाजी!
दादाजी:
तो फिर तुम्हारा नाम मोबाइल का हुआ या सिम
कार्ड का?
राहुल (मुस्कुराते हुए):
सिम कार्ड का!
दादाजी:
बिल्कुल सही! जैसे सिम कार्ड को काम करने के
लिए एक न एक मोबाइल चाहिए, वैसे ही आत्मा को भी शरीर चाहिए।
राहुल (आश्चर्य से):
तो दादाजी, हम सिम कार्ड हैं, मोबाइल नहीं!
दादाजी:
हाँ, और जैसे
पुराने मोबाइल से सिम निकालकर नए मोबाइल में डालते ही उसमें पुराने नंबर सेव रहते
हैं, वैसे ही
आत्मा मेंजो संस्कार जमा होते हैं अगले
जन्म में हमारे साथ जाते हैं। लेकिन हम लोग मोबाइल की चिंता में अंदर के सिम कार्ड
को भूल जाते हैं।मतलब उसमें कुछ सेव ही नहीं करते
राहुल:
ओह, तो भगवान अर्जुन को यही समझा रहे हैं कि इस युद्ध में बस
मोबाइल (शरीर) बेकार होगा, लेकिन सिम कार्ड (आत्मा) तो सेफ ही रहेगा!
दादाजी:
हाँ, बिल्कुल! और भगवान ने अर्जुन को कपड़ों का उदाहरण भी दिया
है कि जैसे हम पुराने कपड़े बदलते हैं, वैसे ही आत्मा नया शरीर धारण करती है।
राहुल:
अच्छा, दादाजी, मैं
भी एक उदाहरण दूँ?
दादाजी:
हाँ, बताओ!
राहुल:
मोबाइल और उसका कवर!
दादाजी:
सही कहा, राहुल! चलो मैं तुम्हे कुछ और उदाहरण देता हूँ
राहुल बताओ कार और ड्राइवर में कार कौन है और ड्राइवर कौन है ?
राहुल:
कार शरीर है और ड्राइवर आत्मा!
दादाजी:
कैसे?
राहुल:
अगर कार का एक्सीडेंट हो जाए, तो ड्राइवर दूसरी कार ले सकता है!
दादाजी:
वाह! और एक और उदाहरण—टीवी और बिजली!
राहुल:
ओह! यानी, टीवी शरीर हुआ और बिजली आत्मा? बिना बिजली के टीवी नहीं चल सकता!
दादाजी:
हाँ! और एक और उदाहरण दिया जाता है—चिड़िया
और पिंजरा!
राहुल (जोश में आकर):
हाँ, दादाजी! अब मुझे समझ आ गया! पिंजरा शरीर है और चिड़िया
आत्मा!
दादाजी:
अब बताओ, तुम्हें पिंजरे का ध्यान रखना चाहिए या चिड़िया का?
राहुल:
चिड़िया का!
दादाजी:
सही! अगर चिड़िया को दाना न दें और बस पिंजरे
को साफ करते रहें, तो क्या चिड़िया खुश रहेगी?
राहुल:
नहीं!
दादाजी:
तो हमें शरीर का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन आत्मा की प्रसन्नता का अधिक ध्यान रखना है।
राहुल:
आत्मा खुश कैसे होती है, दादाजी?
दादाजी:
जब हम अपना धर्म निभाते हैं!
राहुल:
धर्म मतलब कर्तव्य, ना दादाजी?
दादाजी:
हाँ! जैसे विद्यार्थी का धर्म पढ़ाई करना, मानवता का धर्म दूसरों की मदद करना, और मनुष्य का धर्म भगवान का स्मरण करना। जब हम आलस्य में
अपने कर्म नहीं करते, तो आत्मा प्रसन्न नहीं रहती।
राहुल (जोश में):
यानी प्रसन्न रहना और आनंदित रहना आत्मा का
भोजन है!
दादाजी:
बिलकुल सही!
राहुल:
दादाजी! आज तो आपने बिल्कुल अलग ज्ञान दिया
है!
दादाजी (मुस्कुराते
हुए): मैंने नहीं, बेटा, यह
ज्ञान तो भगवान कृष्ण ने दिया है!
राहुल:
दादाजी, क्या हम आत्मा को देख सकते हैं?
दादाजी:
नहीं, राहुल! आत्मा को बाहरी आँखों से नहीं देखा जा सकता, पर आत्मा को देखने के लिये हम ध्यान लगाकर एकांत में बैठकर आत्मा को महसूस
कर सकते हैं ।
राहुल:
दादाजी, आपने आत्मा को महसूस किया है? आत्मा कैसी होती है?
दादाजी:
कल आना, भगवान बताएँगे कि आत्मा कैसी होती है!
राहुल (हैरानी से):
सच में, दादाजी? गीता
में लिखा है क्या?
दादाजी:
हाँ, बेटा! गीता में सब लिखा है! कल हम आत्मा के बारे में और
जानेंगे।
राहुल:
तो दादाजी, क्या अब मैं वीडियो बंद करूँ और जाऊँ?
दादाजी:
हाँ, और जाते-जाते मुझे पानी देना, बहुत प्यास लगी है।
राहुल (शरारती अंदाज
में): दादाजी, आपको या आपकी आत्मा को?
दादाजी (हँसते हुए):
दोनों को! चल, शैतान, जा
के सो जा!
और राहुल अपने कमरे में जाकर सो जाता है
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