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कहानी 3: धर्म का सही अर्थ (गीता सरल कहानियाँ)

 


कहानी
3: धर्म का सही अर्थ

(मंच पर एक सजी-सजाई आरामदायक जगह है। दादाजी का कमरा दादाजी आराम कर रहे है एक ओर दादाजी की कुर्सी है, पास में मेज पर गीता की किताब और चश्मा रखा है। राहुल मोबाइल हाथ में लहराते हुए तेजी से प्रवेश करता है।)

राहुल (उत्साहित होकर): दादाजी! दादाजी! सुनो... मम्मी-पापा ने कह दिया है कि अब मैं रोज रात को आपसे गीता समझ सकता हूँ और वीडियो भी बना सकता हूँ। तो अब जल्दी से बताइए ना, और क्या कहती है ये आपकी गीता?

दादाजी (मुस्कराते हुए): अच्छा राहुल! तो अब तुम रोज मेरे पास इस समय गीता सुनने के लिए आओगे? चलो,तो पहले मुझे ये बताओ कि अब तक तुमने क्या सीखा?

राहुल (घोड़े की तरह तुडक-तुडक दौड़ते हुए): दादाजी, मैंने सीखा कि कौरव-पांडव के साथ-साथ अब तो मम्मी जैसा मन, पापा वाली बुद्धि और जिद करने वाले बच्चे जो हमारी इंद्रियाँ हैं, ये तीनों भी हमारे अंदर रहते हैं।

दादाजी (प्रसन्न होकर): बहुत बढ़िया राहुल! तो बताओ, हमें काम करने के लिए पहले किससे पूछना है?

राहुल: पापा वाली सारथी बुद्धि और मम्मी वाले लगाम जैसे मन से पूछना है, दादाजी।

दादाजी: शाबाश, बेटा! अब चलो, आज की वीडियो शुरू करते हैं। (दादाजी मेज पर से गीता की किताब उठाते है और हाथ में लेकर नमस्कार करते हैं।)

राहुल (आश्चर्य से): एक मिनट दादाजी, आपने किताब को हाथ जोड़कर नमस्कार क्यों किया?

दादाजी: राहुल, ये हमारी धार्मिक पुस्तक है, भगवान की वाणी है। गीता के श्लोकों में, शब्दों में भगवान बसते हैं, इसलिए हमें नमस्कार करना चाहिए।

राहुल: अच्छा दादाजी, क्या मैं भी हाथ जोड़कर नमस्कार करूँ?

दादाजी: हाँ, राहुल बेटा, तुम बहुत समझदार हो। (राहुल भी हाथ जोड़ता है।)

दादाजी (किताब खोलते हुए): आज हम प्रथम अध्याय का प्रथम श्लोक पढ़ेंगे। मेरे साथ श्लोक दोहराओ राहुल:

राहुल: दादाजी, मुझे संस्कृत नहीं आती।

दादाजी (हँसते हुए): जैसे तुम कोरियन और स्पैनिश गाने गा सकते हो, वैसे ही ये श्लोक भी गा सकते हो । याद है, मैंने तुम्हें गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा सिखाई थी ना?

राहुल: हाँ, दादाजी! याद है। अभी सुनाऊ क्या?

दादाजी: बढिया , बाद में सुनाना। अभी श्लोक पढ़ते हैं, वीडियो बन रही है ना?

(दोनों श्लोक दोहराते हैं।)

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।

 मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।1.1।।

दादाजी: बेटा, गीता का पहला श्लोक का पहला शब्द 'धर्म' है। क्या तुम जानते हो धर्म का अर्थ क्या है?

राहुल: हाँ दादाजी, धर्म का अर्थ है रिलीजन—जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई।

दादाजी: नहीं, राहुल। धर्म का अर्थ है कर्तव्य।

राहुल (हैरान होकर): कर्तव्य? ये कैसे दादाजी?

दादाजी: जैसे तुम स्कूल जाते हो तो तुम क्या कहलाते हो विद्यार्थी । विद्यार्थी का कर्तव्य क्या है? पढ़ाई करना। तो तुम्हारा धर्म क्या हुआ?

राहुल: मेरा धर्म, मेरा कर्तव्य हुआ पढ़ाई करना।

दादाजी: बिल्कुल सही! घर पर तुम पुत्र हो, तो पुत्र धर्म क्या है? मम्मी-पापा की बात मानना,

राहुल: दादाजी, जब मैं बाहर जाता हूँ तब मेरा क्या धर्म हुआ?

दादाजी: बेटा, तब तुम्हारा धर्म  मानवता और इंसानियत का हुआ।

राहुल: मानवता का क्या धर्म है मतलब कर्तव्य है?

दादाजी: समाज और सरकार के नियमों का पालन करना, अपने कार्य को नियम से करना, दूसरों की मदद करना और सबके साथ मिलजुल कर रहना। यही मानवता का कर्तव्य है।

राहुल हम सब जहाँ भी हैं, जो भी हैं, अपना-अपना कर्तव्य करके अपना धर्म निभाते हैं?

राहुल: तो दादाजी, फिर "रिलिजन" क्या है? क्या वो धर्म नहीं है?

दादाजी: राहुल, रिलिजन का अर्थ है कि हम किस तरह से ईश्वर से जुड़ते हैं। तुम उसे भगवान, परमात्मा, अल्लाह, जीसस कुछ भी कह सकते हो। जब हम जन्म लेते हैं और बूढ़े होते हैं, तब हम जीव या मनुष्य कहलाते हैं। मनुष्य का कर्तव्य है धर्म है कि वह भगवान को न भूले, चाहे वह किसी भी उम्र का हो, नर हो या नारी। यही हर मनुष्य का धर्म है—ईश्वर से जुड़ना।

राहुल: तो ईश्वर से रिलेशन बनाना ही रिलिजन है दादाजी?

दादाजी: हाँ बेटा, मनुष्य धर्म के लिए धर्म का यही सही अर्थ है। हमने अपने घरों में जैसा अपने बड़ों को करते देखा है, वैसे ही उसी तरीके से हम ईश्वर को प्रेम करते हैं, उनमें श्रद्धा रखते हैं और प्रार्थना करके अपना संबंध बनाते हैं। मनुष्य धर्म है भगवान से जुड़ना और उनके बनाए सब प्राणियों से प्रेम करना।

राहुल: अब मैं धर्म का सही अर्थ समझ गया, दादाजी। मेरा पहला धर्म है मनुष्य धर्म ईश्वर से प्रेम करना, दूसरा पुत्र धर्म और तीसरा विद्यार्थी धर्म।

दादाजी: शाबाश राहुल। अब बताओ राहुल गीता में इस समय क्या होने वाला है?

राहुल: युद्ध होने वाला है ।

दादाजी: और युद्ध में जो सैनिक भाग लेते हैं, उनका क्या धर्म होता है?

राहुल: युद्ध करना।

दादाजी: सही। यही प्रथम श्लोक में कहा गया है यह धर्म का क्षेत्र है, मतलब कर्तव्य का स्थान। यह श्लोक धृतराष्ट्र बोल रहा है। क्या तुम जानते हो, धृतराष्ट्र कौन था?

राहुल: हाँ, धृतराष्ट्र राजा था और कौरवों का पिता था।

दादाजी: क्या वह धर्मी था या अधर्मी?

राहुल: अधर्मी था, क्योंकि उसने राजा का धर्म सही से नहीं निभाया।

अगर वह पूजा-पाठ करता भी होता, तो भी क्या वह अधर्मी ही कहलाता।

दादाजी: हाँ राहुल बिल्कुल वह अधर्मी ही कहलाता।

 ऐसे ही रावण शिवजी का भक्त था, पर वह अधर्मी था क्योंकि उसने मानवता का धर्म नहीं निभाया। सीता जी का अपहरण किया था।

राहुल: और दादाजी रावण तो ऋषियों मुनियों की हत्या करवा देता था। इसलिए वह अधर्मी था ।

दादाजी: तो अधर्मी कौन हुआ .जो अपने कर्तव्यों का सही पालन नहीं करता, और धर्मी वही है जो अपने कर्तव्यों का सही से पालन करता है। समझे राहुल?

राहुल: हाँ दादाजी, अब मुझे धर्म का सही अर्थ समझ में आ गया।

दादाजी: राहुल अब अपने सोने का धर्म पूरा करो और मुझे भी सोने दो।

राहुल: जी दादाजी, क्या मैं आपके पास सो जाऊं?

दादाजी: नहीं राहुल, सुबह स्कूल जाना है, अपना विद्यार्थी धर्म निभाना है। जाओ, अपने कमरे में सो जाओ।

राहुल: जी दादाजी, जय श्री कृष्णा! और राहुल अपने कमरे में आकर सो जाता है।

 

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