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कहानी चार श्रीकृष्ण जहाँ, विजय वहाँ(भगवद्गीता सरल कहानियाँ)


  

शीर्षक: श्रीकृष्ण जहाँ, विजय वहाँ

(दादाजी अपने कमरे में बैठे गीता पढ़ रहे हैं। वे राहुल का इंतजार कर रहे हैं।)

दादाजी: (आवाज़ लगाते हुए) "अरे राहुल बेटा! आज वीडियो नहीं बनानी क्या?"

राहुल: "आ रहा हूँ दादाजी! बस स्कूल का बैग पैक कर रहा था।"

(राहुल भागते हुए आता है) और कहता है

तो दादाजी, धर्म का मतलब होता है कर्तव्य! और मैं अपना कर्तव्य पूरा करके आया हूँ – होमवर्क डन, बैग डन, सब डन डनाडन!"

दादाजी: (हँसते हुए) "बहुत बढ़िया राहुल! बाकी के धर्म भी हमें साथ-साथ डन डनाडन करने होते हैं।"

राहुल: "ठीक है दादाजी, मैं बाकी के सब धर्म भी निभाऊँगा।

दादाजी: कल स्कूल जाने से पहले भगवान को प्रणाम करके जाना।"

राहुल: जी दादा जी।

दादाजी: "शाबाश राहुल! चलो अब वीडियो ऑन करो।"

(राहुल मोबाइल सेट करता है और रिकॉर्डिंग शुरू करता है।)

दादाजी: "तो हम गीता का प्रथम अध्याय पढ़ रहे थे। तुम्हें पता है, राजा धृतराष्ट्र को गीता कौन सुना रहा है?"

राहुल: "नहीं दादाजी, कौन सुना रहा है?"

दादाजी: "संजय! धृतराष्ट्र का सारथी। उसे व्यास जी ने दिव्य नेत्र दिए थे।"

राहुल: (आश्चर्य से) "दिव्य नेत्र? मतलब मैजिकल आइज़?"

दादाजी: "हाँ बेटा, जिससे वह महल में बैठकर ही युद्ध का सारा दृश्य देख सकता था और धृतराष्ट्र को सुनाता था।"

राहुल: "वाह! जैसे मैं टीवी पर क्रिकेट और फुटबॉल देखता हूँ, वैसे ही!"

दादाजी: "हाँ, बस संजय बिना टीवी के बिना किसी स्क्रीन के देख सकता था। वह ज्यादा हाईटेक था!"

(दोनों हँसते हैं। दादाजी कहानी आगे बढ़ाते हैं।)

संजय धृतराष्ट्र को युद्ध स्थल का पूरा हाल कमैंट्री की तरह सुना रहा था ।

दादाजी: "संजय कहता है  कि पांडव और कौरव की सेना सुद्धस्थल में महाराज आमने-सामने आ गई है । अर्जुन और पांडव की सेना में सभी योद्धा युद्ध के लिये तैयार है सब बहुत उत्साहित हैं लेकिन दुर्योधन थोड़ा सा चिंतित दिखाई दे रहा था।"

राहुल: क्यों दादाजी

दादाजी:  राहुल पता है जबकि दुर्योधन के साथ पांडवो से संख्या में बहुत ज्यादा राजा महारथी थे और बहुत सारी सेना थी । ग्यारह अक्षौहिणी सेना कौरवो के पास और जबकी केवल  छ:अक्षौहिणी सेना पांडवो के पास थी। राहुल: ये अक्षौहिणी सेना क्या दादाजी ?

 दादाजी: बस तुम इतना समझ लो राहुल एक अक्षौहिणी सेना में  घोडे हाथी सैनिक सब मिलाकर 6 लाख से अधिक होते हैं। 

राहुल: "ओह! फिर भी दुर्योधन डर क्यों रहा था?"

दादाजी: और तो और  दुर्योधन की सेना मे तो उनके दादाजी कौरव पांडव सब के पितामह , वीर योद्धा भीष्म थे।

राहुल: दादाजी तो बूढे होंगे ना युद्ध करने के लिए

दादाजी: कहने को वे दादाजी थे बेटा पर सबसे बूढ़े होने के बाद भी बहुत शक्तिशाली थे, कोई उन्हे युद्ध में हरा भी नही सकता था। वे ही कौरवों के सेनापति थे ।

राहुल:  सेनापती कौन होता है दादाजी?

दादाजी:  सेनापती जो युद्ध में किसको, किसके साथ लडना है कहाँ खडा होना है सब निर्णय वही लेता है ।

राहुल: जैसे टीम का कैपटन होता है ?

दादाजी: हाँ कैपटन की तरह। और एक थे गुरु द्रोणाचार्य जिन्होने कौरव पांडव दोनो को युद्ध की शिक्षा दी गुरु द्रोणाचार्य भी कौरवों के साथ थे उनको हराना भी बहुत कठिन था ।

इन दोनो को हराना असंभव जैसा था। पर इतना सब पावर शक्ति होते हुए भी दुर्योधन थोडा चिंतित था।

राहुल: क्यों दादाजी उसके पास तो पांडवो से हर चीज ज्यादा थी ज्यादा पावर थी ज्यादा राजा ,ज्यादा सैनिक है  ना दादाजी?

दादाजी: "क्योंकि राहुल उसके पास शक्ति तो थी, लेकिन धर्म उसके साथ नहीं था। जब हम गलत होते हैं, तो डर और चिंता हमें घेर लेती है।"

राहुल: "ओह! तो दुर्योधन को अंदर से पता था कि वह गलत है?"

दादाजी: "बिल्कुल! इसलिये धृतराष्ट्र और दुर्योधन दोनो के मन में उथल-पुथल चल रही थी। और पांडवों की सेना छोटी थी,  राजा भी कम थे तब भी वे निडर थे उनमें पूरा आत्मविश्वास था कि वे जीतेंगे क्योंकि वे सही थे, धर्म के साथ थे और अर्जुन तो बहुत उत्साहित थे क्योंकि उनके सारथी भगवान श्रीकृष्ण थे।"

राहुल: "अर्जुन और श्रीकृष्ण बहुत अच्छे दोस्त थे ना?"

दादाजी: "हाँ, अर्जुन उन्हें अपना प्रिय सखा कहते थे। राहुल पता है  सारथी बनना आसान नहीं होता। युद्ध के दौरान राजा को दिशा बताने के लिये सारथी की कमर पर पैर मारकर राजा बताता है कि रथ दाये ले चलो अब बाए ले चलो।क्योंकि शोर बहुत होता है। भगवान कृष्ण जो बहुत बडे सम्राट थे । उन्होने अपने सखा के प्रेम के लिये सारथी बनना स्वीकार किया ।

जिससे उसे पता चलता है कि रथ किस दिशा में ले जाना है।"

राहुल: (आश्चर्य से) "तो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के लिए यह सब किया?"

दादाजी: "हाँ, श्रीकृष्ण ने अर्जुन के लिए ही नही दुर्योधन की भी मदद की । राहुल: वो कैसे दादाजी

दादाजी: दुर्योधन भी भगवान श्रीकृष्ण के पास सहायता माँगने गया था, उसको भी कृष्ण ने अपनी नारायणी सेना दे दी।

राहुल: क्यों दादाजी? दुर्योधन तो दुष्ट था फिर उसको अपनी सेना क्यों दी कृष्ण भगवान ने।

दादाजी: भगवान से बेटा जो भी मदद माँगता है भगवान की शरण जाता है भगवान उसकी इच्छा जरूर पूरी करते हैं । इसलिए उसको अपनी शक्तिशाली सेना दे दी।

"पर अर्जुन ने तो सिर्फ भगवान को चुना था, भगवान ने अर्जुन को पहला मौका दिया था चुनने के लिए एक तरफ मैं हूँ और दूसरी तरफ मेरी नारायणी सेना जो चाहे माँग लो।

अर्जुन को पता था भगवान शस्त्र लेकर युद्ध भी नहीं करेंगे पर अर्जुन ने भगवान को ही चुना।

राहुल: क्यों दादाजी ?

दादाजी:  अर्जुन जानते थे कि  भगवान की शक्ति से अधिक जरूरी है सही मार्गदर्शन। इसलिए अर्जुन ने भगवान को चुना। भगवान हमें इन कहानियों के माध्यम से बताते हैं कि अगर तुम्हारे पास कितना भी धन वैभव शक्ति हो पर अगर भगवान का प्रेम नहीं है मार्गदर्शन नहीं है तो हार ही होती है और जहाँ भगवान का साथ होता है भगवान का मार्गदर्शन होता है उनकी कृपा होती है वहाँ विजय होती है इसलिए हर कार्य में हमें अपने हृदय के भगवान परमात्मा को साथ रखना चाहिए उनकी कही बातों को समझना चाहिए।  राहुल गीता के अंतिम श्लोक में भी कहा गया है जहाँ भगवान होते है वहीं विजय होती है मेरे साथ साथ यह श्लोक  बोलो राहुल।

दादाजी-राहुल:
"यत्र योगेश्र्वरः कृष्णो, यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूति, ध्रुवो नीतिर्मतिर्मम॥

दादाजी: "इसका मतलब जानते हो?"

"जहाँ श्रीकृष्ण और अर्जुन हैं, वहीं ऐश्वर्य, नीति और विजय होती है।"

राहुल: (मुस्कराते हुए) :  इसका मतलब है कि भगवान का साथ जहाँ होता है वहाँ जीत होती है ।

 दादाजी: "बिल्कुल सही बेटा! जहाँ श्रीकृष्ण होते हैं, वहीं विजय होती है। यही गीता का संदेश है।"

 राहुल इसको तुम कविता रूप में भी बोल सकते हो

"योगेश्वर श्री कृष्ण और धनुर्धर श्री अर्जुन जहाँ।
ऐश्वर्य, लक्ष्मी वहाँ, अटल नीति और विजय वहाँ।।"

राहुल: "हाँ दादाजी! कल मैं आपको ये श्लोक और कविता सुनाऊँगा।"

दादाजी: तो अब आगे की कहानी कल बताएँगे ठीक है

राहुल: दादाजी एक मिनिट क्या मैं भी भगवान को अपना दोस्त बना सकता हूँ ।

दादाजी: हाँ हाँ क्यों नहीं,

राहुल: पर कैसे दादा जी?

दादाजी: "उनसे अपनी हर छोटी-बड़ी बात शेयर करो, जैसे किसी अच्छे दोस्त से करते हो।"

राहुल: (शरारती अंदाज में) "मतलब शैतानियाँ भी बता सकता हूँ?"

दादाजी: हाँ राहुल अपनी गलती ,अपनी शैतानी अपनी अच्छीबात बुरी बात ,छोटी बडी सब बात शेयर कर सकते हो । जो दोस्तो को नहीं बता सकते वो भी बता सकते हो । जब तुम भगवान से सब बाते शेयर करोगे तो वे तुम्हें तुम्हारी बुद्धि से मन के द्वारा तुम्हे बताएँगे कि तुम सही हो या गलत तुम्हे क्या करना चाहिए।

राहुल: "लेकिन भगवान मुझे सुन सकते हैं?"

दादाजी: "हाँ बेटा, वे तुम्हारे हृदय में रहते हैं।"

राहुल: "ओह! तो मेरे अंदर कौरव-पांडव गुण-अवगुण बनकर रहते हैं, मन-बुद्धि परिवार की तरह रहते हैं, और अब भगवान जी भी मेरे अंदर रहते है वो मेरे अंदर क्या बनकर रहते है दाजाजी?

दादाजी: (हँसते हुए ) वे परमात्मा रूप में रहते हैं । ओह इसलिये मैं इतना मोटा हूँ ये सब मेरे अंदर रहते हैं। नही राहुल ये सब बहुत सूक्ष्म है वेटलैस हैं । इन्हे देख भी नहीं सकते। बस महसूस कर सकते हो ।

राहुल: "अब मैं भगवान को अपना सबसे अच्छा दोस्त बना लूँगा!"

दादाजी: "बहुत बढ़िया! अब सोने जाओ।"

राहुल: (मुस्कराते हुए) "जय श्रीकृष्ण, दादाजी!"

(राहुल खुशी-खुशी गुनगुनाता हुआ चला जाता है।)

"योगेश्वर श्री कृष्ण और धनुर्धर श्री अर्जुन जहाँ।
ऐश्वर्य, लक्ष्मी वहाँ, अटल नीति और विजय वहाँ।।"

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