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कहानी छह अर्जुन के गुरु श्री कृष्ण (भगवद्गीता सरल कहानियाँ)


 कहानी छह अर्जुन के गुरु कृष्ण

 

आज राहुल के अंदर भी द्वंद्व चल रहा है कि अर्जुन कह तो सब सही रहे है फिर भगवान कृष्ण कैसे अर्जुन को कहते हैं कि युद्ध करना सही होगा क्या होगा आगे, वो तो रात को दादाजी ही बताएँगे। आज राहुल अपना सब काम जल्दी-जल्दी खत्म करके दादाजी के कमरे में आ जाता है

राहुल: दादाजी, जल्दी बताइए न, आगे क्या होता है?

दादाजी: (मुस्कुराते हुए) अरे, पहले मुझे मेरा दूध तो पी लेने दो। आज तो बहुत जल्दी मची हुई है बेटा जी को!

राहुल: ठीक है, दादाजी, आप दूध पी लीजिए। (कुर्सी पर बैठकर भगवद गीता के पन्ने पलटने लगता है।)

दादाजी: राहुल, अध्याय दो खोलो।

राहुल: क्या? हम अब अध्याय दो पर आ गए, दादाजी?

दादाजी: हाँ, आज से हम अध्याय दो से कहानी सुनेंगे। लेकिन वीडियो शुरू करने से पहले, क्या तुम बता सकते हो कि अर्जुन युद्ध के लिए क्यों मना कर देता है?

राहुल: हाँ, दादाजी! अर्जुन अपने पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और अपने संबंधियों का वध नहीं करना चाहते। युद्ध होगा तो बहुत सारे सैनिक मरेंगे। समाज की प्रगति रुक जाएगी, बच्चे अशिक्षित रह जाएंगे, चोरी, लूटपाट सब बढ़ जाएगा।

दादाजी: बिलकुल सही कहा, राहुल! यही सब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा था। अब वीडियो ऑन करो।

(राहुल वीडियो ऑन करता है)

दादाजी: अर्जुन अपना गांडीव धनुष रथ में रखकर सिर झुकाकर बैठ जाता है और कहता है, "मैं युद्ध नहीं करूंगा।"

लेकिन राहुल... अर्जुन युद्ध से मना तो कर देता है, लेकिन संतुष्ट महसूस नहीं करता।

राहुल: संतुष्ट क्यों नहीं होता, दादाजी? एक बार जो कमिटमेंट कर दी, वो कर दी, फिर क्या सोचना?

दादाजी: (हंसते हुए) अभी उसने कोई कमिटमेंट नहीं की है, राहुल! उसने बस अपने मन की बात कही है। उसके मन में उथल-पुथल चल रही है कि युद्ध न करने का निर्णय सही होगा या गलत।

दादाजी: इसीलिए थोड़ी देर मौन रहकर, सोच-विचार करके अर्जुन एक निर्णय लेता है।

राहुल: (खड़े होकर उत्साहित होकर) तो अर्जुन ने डिसीजन ले लिया? अब करेगा कमिटमेंट?

दादाजी: नहीं, राहुल! पहले सुनो। अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहता है – "हे माधव, मेरे मन में जो आया, मैंने वह सब कह दिया, लेकिन मैं बहुत बेचैन हूँ, मतलब कन्फ्यूज्ड हूँ। मुझे नहीं समझ आ रहा कि मैंने सही कहा या गलत।"

राहुल: फिर क्या करता है अर्जुन?

दादाजी: अर्जुन तब भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करता है, "हे मधुसूदन, हे मुरारी, आप से विनती है कि आप मेरे गुरु बन जाइए और मुझे सही मार्ग दिखाइए।"

राहुल: ओह! तो अर्जुन अब पूरी तरह से श्रीकृष्ण को गुरु मानने के लिए तैयार हो गये!

दादाजी: बिल्कुल, बेटा! अब असली शिक्षा शुरू होती है।

(राहुल कुछ सोचते हुए कहता है।)

राहुल: भगवान श्रीकृष्ण के बहुत सारे नाम हैं, न दादाजी?

दादाजी: हाँ राहुल, और हर नाम का एक विशेष अर्थ भी होता है।

राहुल: अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण को मधुसूदन क्यों कहते हैं?

दादाजी: क्योंकि वे चाहते हैं कि कृष्ण अब मधुसूदन बनकर उनके अज्ञान रूपी असुर का वध करें, जैसे उन्होंने मधु नामक राक्षस का वध किया था।

राहुल: तो दादाजी, भगवान के "मुरारी" नाम का क्या अर्थ हुआ?

दादाजी: भगवान श्रीकृष्ण ने मूरा नामक असुर का वध किया था, इसलिए उन्हें "मुरारी" कहा जाता है।

राहुल: और "गोपाल" का अर्थ?

दादाजी: "गोपाल" का अर्थ है, भगवान गोप यानी ग्वाले हैं, जो गायों को चराते हैं। "गो" का अर्थ है "गाय," और "पाल" का अर्थ है पालने वाले, यानी गायों को पालने वाले – गोपाल।

राहुल: (मुस्कुराते हुए) अच्छा दादाजी, मैं कल आपको भगवान के पाँच नाम याद करके बताऊँगा, और आप उनके अर्थ समझाइएगा। ठीक है?

दादाजी: हाँ, बिल्कुल! अब वापस विषय पर आते हैं। अर्जुन भगवान कृष्ण को अपना गुरु, यानी टीचर बना लेते हैं।

राहुल: लेकिन अर्जुन ने भगवान कृष्ण को गुरु क्यों बनाया, दादाजी? वे ऐसे ही समझा देते!

दादाजी: गुरु बनाने का अर्थ है कि अब अर्जुन कृष्ण की बात ध्यान से सुनेंगे, और भगवान भी उन्हें मित्र की तरह नहीं, बल्कि एक शिष्य की तरह समझाएंगे।

राहुल: बेटा, जब हमें किसी निर्णय में कठिनाई होती है, तो हमें अपने बड़ों से सलाह लेनी चाहिए – जैसे माता-पिता, बड़े भाई-बहन, गुरु, या आजकल लोग काउंसलर के पास जाते हैं।

राहुल: हाँ, दादाजी! हमारे स्कूल में भी बच्चों की काउंसलर हैं। वे शरारती बच्चों के माता-पिता को बुलाकर उनकी काउंसलिंग करती हैं।

दादाजी: बेटे, काउंसलिंग की जरूरत सिर्फ शरारती बच्चों के माता-पिता को ही नहीं होती। जो बच्चे बहुत ज्यादा शांत रहते हैं, दोस्त नहीं बनाते, या हमेशा किताबों में ही डूबे रहते हैं, उन्हें भी मदद की जरूरत होती है। बच्चों के लिए खेलना, कूदना, पढ़ना – सब जरूरी होता है।

राहुल: ठीक है, दादाजी! अब वापस विषय पर आते हैं। जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के गुरु बन जाते हैं, तो वे सबसे पहले क्या करते हैं?

दादाजी: गुरु बनते ही भगवान कृष्ण अर्जुन को डाँट लगाते हैं।

राहुल: (हँसते हुए) गुरु बनने का फायदा उठा रहे हैं भगवान श्रीकृष्ण! अर्जुन के बराबर की उम्र के हैं ना, और दोस्त भी!

दादाजी: हाँ, दोनों बराबर की उम्र के हैं, लेकिन भगवान फायदा नहीं उठा रहे। वे सही बात समझाने के लिए डाँटते हैं। और अर्जुन भी जानते हैं कि श्रीकृष्ण उनसे ज्यादा समझदार हैं और दिव्य व्यक्तित्व वाले हैं।

राहुल: मतलब, उनमें मैजिक पावर है?

दादाजी: हाँ, शक्ति, ज्ञान – सब कुछ बहुत ज्यादा!

राहुल: तो भगवान कृष्ण अर्जुन को क्या कहकर डाँटते हैं?

दादाजी: श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – "हे अर्जुन! इस युद्ध के समय पर तुम्हें यह कायरता कहाँ से याद आ रही है? तुम कायर नहीं हो। तुम आर्य हो, यानी शिक्षित और समझदार।"

राहुल: मतलब, वेल-एजुकेटेड पर्सन, दादाजी?

दादाजी: हाँ! और वे कहते हैं – "तुम भारतवंशी हो, राजा भरत के वंशज हो, कौन्तेय हो, यानी कुंती के पुत्र। तुम्हारे माता-पिता दोनों वीरों के कुल से हैं, क्षत्रिय हैं। फिर तुम ऐसी कायरों जैसी बातें कैसे कर सकते हो?"

राहुल: दादाजी, एक मिनट! "कौन्तेय" मतलब "कुंती के पुत्र"... तो क्या मेरा नाम भी मम्मी के नाम से बन सकता है?

दादाजी: हाँ, कल तुम अपनी मम्मी के साथ मिलकर अपना नाम बना सकते हो – जैसे "यशोदानंदन" और "देवकीनंदन।" अपने नाम के आगे

राहुल: वाह, मज़ा आ जाएगा! लेकिन अभी वापस टॉपिक पर आते हैं।

दादाजी: हाँ, तो मैं क्या कह रहा था?

राहुल: आप कह रहे थे कि "तुम एजुकेटेड पर्सन हो, अच्छे वीरों की फैमिली से हो, और फिर भी युद्ध करने से मना कर रहे हो।"

दादाजी: बिल्कुल! राहुल, सोचो, अगर एक डॉक्टर जो सर्जन है, ओपरेशन करता है ,ओपरेशन थियेटर में मरीज लेटा हुआ है और डाक्टर ये कहकर मना कर दे कि मैं ऑपरेशन नहीं करूँगा । इसमें तो काटना पडता है, खून निकलता है तो वो डाक्टर सर्जन कहलाएगा।

राहुल: उसे तो कोई डॉक्टर भी नहीं कहेगा, दादाजी!

दादाजी: तो ऐसे ही, क्षत्रिय का कर्तव्य है कि वह अन्याय के विरुद्ध लड़े। अपने देश, अपने राज्य की रक्षा करे। युद्ध करना, अर्जुन का क्षत्रिय धर्म है। इसलिए इस समय युद्ध करना, उसका कर्तव्य निभाना ज़रूरी है।

राहुल (कुछ सोचते हुए): हाँ दादाजी, और भगवान कृष्ण ने भी तो अपने कंस मामा को मारा था।

दादाजी: हाँ, क्योंकि कंस मामा दुष्ट था, अत्याचारी था, सब पर अत्याचार करता था।

राहुल: लेकिन दादाजी, भीष्म और द्रोणाचार्य तो दुष्ट और अत्याचारी नहीं थे?

दादाजी: हाँ राहुल, वे लोग दुष्ट नहीं थे, लेकिन वे दुर्योधन जैसे दुष्ट और धृतराष्ट्र जैसे मूर्ख राजा का साथ दे रहे थे। वे यह नहीं समझ रहे थे कि जिसे वे राजधर्म समझकर निभा रहे थे, वह वास्तव में अधर्म था। इसलिए, दुष्टों का साथ देने वाला भी अधर्मी हो जाता है। वे क्षत्रिय धर्म का पालन तो कर रहे थे, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा की वजह से गलत का साथ दे रहे थे।

राहुल: तो दादाजी, हमें गलत व्यक्ति का साथ नहीं देना चाहिए?

दादाजी: बिल्कुल सही, राहुल! हमें हमेशा सही व्यक्ति का साथ देना चाहिए। यही तो श्रीमद्भगवद गीता में बताया गया है कि यदि अपना कोई भी व्यक्ति—पुत्र, पिता, माता, गुरु, या दादाजी—गलत मार्ग पर है, तो हमें उसका साथ नहीं देना चाहिए।

दादाजी (थोड़ा ठहरकर): अब सोचो, अगर तुम किसी गलत काम करने वाले बच्चे का साथ दोगे, भले ही तुम बाकी सब अच्छे काम करते हो, तो क्या तुम्हें भी दंड मिलेगा या नहीं?

राहुल: हाँ दादाजी, गलत काम का दंड तो मिलेगा।

राहुल (उत्सुकता से): तो दादाजी, क्या अर्जुन को समझ में आ गया कि उसे अब युद्ध करना है और गलत लोगों को दंड देना है?

दादाजी: नहीं, भगवान ने देखा कि अब मैं अर्जुन का ही नहीं, पूरे विश्व का गुरु बनकर वह ज्ञान दूँगा जो सबको बताएगा कि हम कौन हैं, हमारा जन्म क्यों हुआ है और हमारे जीवन का क्या उद्देश्य है, हमारा कर्तव्य क्या है।

राहुल: पर दादाजी, यह सब बताने में तो बहुत समय लग जाएगा! इतने समय तक युद्ध रुका रहेगा?

दादाजी (मुस्कुराते हुए): बहुत सही सोचा, राहुल! इसके लिए भगवान जानते हैं कि क्या करना है। वे चुटकी बजाते हैं।

राहुल (चुटकी बजाते हुए): ऐसे? लेकिन चुटकी बजाने से क्या होगा?

दादाजी: भगवान चुटकी बजाकर समय को रोक देते हैं। सारे लोग जिस स्थिति में होते हैं, उसी में स्थिर हो जाते हैं। जो जहाँ खड़ा था, वहीं खड़ा रह जाता है। बस, भगवान कृष्ण अर्जुन को ज्ञान देना शुरू कर देते हैं।

राहुल (आश्चर्य से): लेकिन दादाजी, क्या संजय और राजा धृतराष्ट्र भी वहीं रुक जाते हैं?

दादाजी: नहीं राहुल, संजय और राजा धृतराष्ट्र पर समय रुकता नहीं है। संजय सबकुछ देखता और सुनता है और राजा धृतराष्ट्र को सब वर्णन करके बताता है।

दादाजी (मुस्कुराते हुए): अब भगवान क्या ज्ञान देंगे, वह मैं कल बताऊँगा।

राहुल: तो दादाजी, वीडियो ऑफ कर दूँ?

दादाजी: हाँ बेटा, जय श्री कृष्ण!

राहुल: जय श्री कृष्ण, दादाजी!

(राहुल अपने कमरे में चला जाता है।)

 

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