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Bhagavad Gita Chapter 2 Part 2(आत्मा का स्वरूप)




आत्मा का स्वरूप

कृष्ण बोले, हे अर्जुन! आत्मा क्या है? अब मैं बताता हूँ।

इस आत्मा के स्वरूप को मैं विस्तार से समझाता हूँ।।

आत्मा ही है प्राण जो, हमारे शरीर को चेतना देती है।

चेतना के बिना शरीर तो केवल निर्जीव मिट्टी है।।

यह देह मिट्टी की एक दिन मिट्टी में मिल जाएगी।

आत्मा अविनाशी, अमर है, रूप बदल फिर आएगी।।

इसको देखना, इसको मापना ये संभव नहीं हो सकता।

बाल की नोक के दसहजारवे भाग से भी है यह छोटा।।

पर यही तो जीवन शक्ति है जो हमें जीव बनाती है।

आत्मा ना जन्म लेती है और ना ही मारी जाती है।।

जैसे हमारी काया अपने नित नए वस्त्र में सजती है।

वैसे ही हमारी आत्मा भी पुराना शरीर बदलती है।।

शस्त्रों से कट सकती नही,ना अग्नि से सकती है जल।

ना वायु उसे सुखा सकती है, ना भिगो सकता है जल।।

टुकड़े इसके हो नहीं सकते,ना घोल सकता है रसायन।

ये शाश्वत है, ये सर्वव्यापी, ये स्थिर है, ये सनातन।।

यह अद्भुत आश्चर्य है इसकी कल्पना करना कठिन है।

तुम मानो या ना मानो पर यही आत्मा का विवरण है।।

पुन: जन्म लेती है आत्मा, फिर शोक करने का क्या अर्थ है?

अगर ये मरती है तो भी, अधर्मी की मृत्यु पर शोक व्यर्थ है।।

उठो अर्जुन अब स्वीकार करो तुम अपना क्षत्रिय धर्म।

इस युद्ध से बढ़कर नहीं है तुम्हारे लिए अब कोई कर्म।।

शेर हो तुम शेर की भाँति, ही अपना व्यवहार करो।

गीदड़ बन कर तुम अपने,स्वधर्म से ना इनकार करो।।

युद्ध में मिले जीत या हार, दोनों में है तुम्हारा भला।

योद्धा की भाँति मरते हुए, मिलेगा स्वर्ग का द्वार खुला।।

डरपोक, दुर्बल, कायर, बेचारा कितने शब्दों से होगा उपहास।

यश खोकर अपयश में जीना, तुमको भी नहीं आएगा रास।।

वैसे भी क्या भूल गए हो, तुम रानी द्रोपदी का चीरहरण।

क्या प्रतिज्ञा ली थी तुमने ,क्या दिया था उनको वचन।।

यह मत सोचो कोई तुमको दयावान कहकर पुकारेगा।

इतिहास केवल तुम्हारा नाम कायर अर्जुन ही गाएगा।।

सुख-दुख, लाभ-हानि छोडकर अब केवल तुम युद्ध करो।

मैं कह रहा हूँ, शिष्य-अर्जुन उठो और केवल युद्ध करो।।

जब देखा कृष्ण ने अर्जुन,अब भी अपनी जिद पर अड़ा है।

 इतना समझाने के बाद भी, युद्ध के लिए नहीं खड़ा है।।

 

 


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